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________________ રહર भगवतीय अकर्मभूमौ भवेत् कर्मभूमौ भवेत् १ गौतम ! जन्मसद्भावं च प्रतीत्य कर्मभूमी यथा बकुशः। एवं छेदोपस्थापनिकोऽपि । परिहारविद्धिकश्च यथा पुलाका शेषा यथा सामायिकसंयतः ॥सू० २।। टोका-'सामाइयसंजए णं भंते !' सामायिफसंयतः खलु भदन्त ! "f सवेयर होज्जा अवेयए होज्जा' किं सवेदको भवेत् अवेदको वा भवेदितिमश्ना, भगवानार -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सवेयए वा होना-अवेयए वा होआ' सवेदको वा भवेत् अवेदको वा भवेत् सामायिकसंयतः सवेदको भवेद् अवेदकोऽपि भवेत् नवमगुणस्थानके वेदस्योपशमः क्षयो वा भवति अतोऽत्रावेदको भवति, पतत्पूर्ववत्तिगुणस्थान केषु तु सामायिकसंयतः सवेदको भवति नवमगुणस्थानकपर्यन्तं दसरा चेदवार का कथन 'सामाझ्यसंजमेणं भंते। कि सवेयए होज्जा अवेयए होजा' इत्यादि,. टीकार्थ-गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'सामाइयसंजए णं भंते ! कि सवेयए होज्जा अवेयए होज्जा' हे भदन्त ! सामायिक संयत वेवाला होता है ? अथवा वेदरहित होता है ? उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है-गोयमा ! सवेयए वा होज्जा, अवेयए वा होज्जा' हे गौतम ! सामायिक संयत वेदवाला भी होता है और वेदरहित भी होता है। सामायिक संयत नौवें गुणस्थानक तक कहा जाता है, वेद का नौवें गुणस्थानक में उपशम अथवा क्षष होता है। नौवें से नीचे के गुणस्थानों में जब सामायिक संयत रहता है तब वह वेद वाला कहलाता है और नौवें में वह उसके उपशम अथवा क्षय कर देने पर अवेदक कहलाता है । इसीलिये यहां उत्तर में प्रभुश्री ने ऐसा कहा है कि હવે બીજા વેદકારનું કથન કરવામાં આવે છે.'सामाइयसंजए णं भंते ! किं सवेयए होज्जा, अवेयए होज्जा' त्याल टाय:-श्रीगीतमस्वामी प्रभुश्रीन ये पूछ्यु छ ४-'सामाइय संजए णं भंते ! किं सवेयए होज्जा अवेयए होज्जा' सावन सामायि४ सयत દવાળા હોય છે ? અથવા વેદ વિનાના હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु श्री गीतभस्वाभान युछ 3-'गोयमा! सवेयए वा होज्जा, अवेयए वा होज्जा' ७ गौतम ! सामायि: संयत वाणा पर डाय , मन ३४ વિનાના પણ હોય છે. સામાયિક સંયત નવમાં ગુણસ્થાનક સુધીના કહે. વાય છે. વેદનાઓને નવમાં ગુણસ્થાનકમાં ઉપશમ અથવા ક્ષય થાય છે. નવમાંથી નીચેના ગુણસ્થાનમાં જ્યારે સામાયિક સંયત રહે છે, ત્યારે તે વેધવાળા કહેવાય છે. અને નવમામાં તે વેદને ઉપશમ અથવા ક્ષય કરી ,
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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