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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१३-३५ परिमाणहारनिरूपणम् २५० मुत्कर्षतः कोटिशतपृथक्त्वसंख्यत्वादिति । 'पडिसेवणाकुसीला संखेज्जगुणा' बकुशापेक्षया प्रतिसेवनाकुशीला संख्येयगुणा अधिका भवन्ति, ननु बकुशपतिसेवनाकुशीलयो रुभयोरपि उत्कर्पतः कोटि शलपृथक्त्वमानतया कथं वकुशापेक्षया प्रतिसेवनाकुशीलानां संख्येयगुणाधिकत्वमिति चेदत्रोच्यते बकुशानां यत् कोटिशतपृथक्त्वं तत् द्वित्राहि कोविशतमानात्मकम् प्रतिसेवनाकुशीलानां तु कोटिशतपृथक् वम् चतुः षट् कोटिशतमानमित्यतो बकुशापेक्षया मतिसेवनाकुशीलानां संख्ये यगुणाधिकत्यकथनं न विरुद्धमिति संख्येयत्वस्याने कविधत्वात् 'कसायकुसीला संखेज्जगुणा' प्रतिसेवनाकुशीलापेक्षया कपायकुशीलाः संख्येयगुणा कोटिशत पृथक्त्व है। 'पडिविणाकुमीला संखेज्जगुणा' प्रतिसेवना कुशील बकुशों की अपेक्षा संख्शातगुणे अधिक है। शंका--यकुश और प्रतिसेवनाकुशील इन दोनों का प्रमाण उस्कृष्ट से कोटिशत पृथरस्व कहा गया है तो फिर यकुशों की अपेक्षा प्रतिसेवना कशीलों का प्रमाण संख्यालगुणा अधिक हबकी अपेक्षा क्यों कहा गया है? उत्तर--बकुशों का जो कोटिशतपृथक्त्व प्रमाण शहा गया है वह दो तीन आदि कोटिशनरूप कहा गया है और प्रतिसेवना कुशीलों का जो कोटिशतपृथक्त्व प्रमाण कहा गया है वह चार छह कोटि शतरूप कहा गया है। इस प्रकार पशों की अपेक्षा प्रतिसेवनाकुशीलों का प्रमाण संख्यातगुणा अधिक जो कहा है वह विरुद्ध नहीं पड़ता है, क्योंकि संख्यात अनेक प्रकार का होता है । 'कसायकुसीला संखेज्जगुणा' प्रतिसेवना कुशीलों की अपेक्षा आपायकुशील छ. भ-तयानु प्रभा थी रिशत पृथक छे. 'पडिसेवणाकुसीला संखेज्जगुणा' प्रतिसेवना पुशीत ५। ५२di संन्यात! वधारे छ. શંકા–બકુશ અને પ્રતિસેવના કુશીલ આ બેઉનું ઉત્કૃષ્ટ પ્રમાણુ કેટિ શત પૃથફત્વનું કહ્યું છે, તે પછી બકુશે કરતાં પ્રતિસેવના કુશીલેનું પ્રમાણ સંખ્યાતગણુ વધારે તેમની અપેક્ષાથી કેમ કહ્યું છે? ઉત્તર-બકુશેનું જે કટિશત પૃથક્વ પ્રમાણે કહ્યું છે, તે બે ત્રણ વિગેરે સે કરોડ રૂપ કહેલ છે અને પ્રતિસેવના કુશીલનું જે કેશિત પૃથકવ પ્રમાણે કહ્યું છે, તે ચાર, છ કરેડ રૂ૫ કહેલ છે, આ રીતે બકુશ કરતાં પ્રતિસેવના કુશીલેનું પ્રમાણ સંખ્યાતગણુ વધારે જે કહ્યું છે, તે કથન वि३ यतु नथी भडे सध्यात अने प्रा२तु हाय छे. 'कसायकुसीला संखेज्जगुणा' प्रतिसेवन शीतानी अपेक्षाथी पायशी थी सभ्यात भ०३३
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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