SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका बोका ०२५ २.६ सू०१३-३५ परिमाणहारनिरूपणम् २५१ कुसीलेवि' एवम् -वकुशवदेव प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि पतिपद्यमानप्रतिसेवनाकुशीलापेक्षया कदाचिद् भवन्ति कदाचिद् न भवन्ति, यदि भवन्ति तदा जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा एकदा जायन्ते उत्कर्षेण कोटिशत पृथक्त्वम् पूर्वपतिपन्न प्रतिसेवनाकुशीलापेक्षया तु जघन्योत्कृष्टाल्पां कोटिशतपृथक्वममाणामतिसेवना कुशीला एकसमयेन जायन्ते इत्यर्थः । 'कसायकुमीलाणं पुच्छा' कपायकुशीला: खलु भदन्त ! एकसमये नियन्तो अवन्तीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पडिचज्जमाणए पडुच्च सिप अस्थि सिय नत्थि' पतिपद्यमानकान्-कपायकुशीलान् अपेक्ष्य स्यादरित-कदाचिद्भवति, स्यान्नास्ति कदाचिन भवलि, 'जइ अत्थि' यदि अरित तदा 'जहन्नेणं एकको वा दो वा तिन्नि वा' जघन्येनैको वा द्वौ वा त्रयो वा कपायकुशीला एकसमये भवन्ति कुसीले वि' इसी प्रकार का कथन प्रतिपद्यमान प्रतिसेवनाकुशीलों की अपेक्षा लेकर और प्रतिपन्न प्रतिस्लेवनाकुशीलों की अपेक्षा लेकर जघन्य और खस्कृष्ट से करना चाहिये। तथा च-प्रतिपद्यमाल प्रतिसेवना कुशीलों की अपेक्षा से कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते हैं। यदि होते हैं तो जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन होते हैं एक समय में और उत्कृष्ट से शतपृथस्य प्रमाण होते हैं एक समय में इत्यादि कसायकुलीलाणं पुच्छा' हे अदन्त ! कषायकुशील एक समय में जितने होते हैं ? इस के उत्तर में प्रभुश्री करते हैं-'गोयना । पडिवज्जमाणए एडच्च लिय अस्थि लिय नरिय' हे गौतम ! प्रतिपद्यमान कपायाशीलों की अपेक्षा ले कषायकुशील कदाचित् होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं । 'जइ अस्थि जहन्ने] एक्को वा दो वा पडिसेवणाकुसीले वि' मा प्रभानु जयन प्रतिपयमान प्रतिसेवना કુશીલેની અપેક્ષા લઈને અને પ્રતિપન્ન પ્રતિસેવન કુશીલેની અપેક્ષા લઈને જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી કહેવું જોઈએ તથા પ્રતિપદ્યમાન પ્રતિસેવના કુશીલોની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ એક સમયમાં હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક સમયમાં કેટિશત પૃથફત્ર પ્રમાણ હોય છે. 'कसायकुसीले णं पुच्छा' लगवन् षायशीत समयमा टस हाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रदुश्री ४९ छे -गोयथा ! पडिबजमाणए पइच्च सिय अयि सिय नस्थि' गीतम! प्रतिपयभान पायशीवानी पेक्षाथी ४पायशीस वा२ ७य ५९ छे, मने पार नयी ५ उता. 'जइ अस्थि जहन्नेणं एकको वा दो वा तिन्नि वा' ने पायशीत गे: समयमा
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy