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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१३-३५ परिमाणद्वारनिरूपणम् २४९ स्यादस्ति-कदाचिद्भवति, स्यान्नास्ति-कदाचित् न भवति । 'जइ अस्थि' यदि अस्ति तदा 'जहन्नेणं एकको वा दो वा तिनि वा जघन्येन एको वा द्वौ वा प्रयो वा भवन्ति 'उकोसेणं सयपुहुत्त' उत्कर्षेण शतपृथक्त्वम् द्विशतादारस्य नवशतपर्यन्तं पुलाका भवन्तीति । 'पुचपडिवन्नए पडुच्च' पूर्वप्रतिपनकान् पुलाकान् प्रतीत्य, पूर्वपतिपन्नपुलाकापेक्षया इत्यर्थः 'सिय अस्थि सिय नस्थि' स्यात्कदाचित् अस्ति-भवति, स्यात्-कदाचित् नास्ति-न भवति 'जइ अत्थि' यदि अस्ति -भवति तदा 'जहन्नेणे एक्को वा-दो बा तिमि वा' जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा पुलाका एकसमये भवन्ति । 'उक्क सेणं सहस्सपुहुत्तं' उत्कर्षेण सहस्र पृथक्त्वम् द्विसहस्रादारभ्य नवसहस्रपर्यन्तम् एकसमये पुलाका भवन्तीति । में पुलाक कदाचित् होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं । 'जह अस्थि जहन्नेणं एको वा दो बा तिन्नि वा' चदि होते हैं तो कदाचित् एक भी हो सकता है, कदाचित् दो भी हो सकते हैं और कदाचित तीन भी हो सकते हैं। यह कथन जघन्य की अपेक्षा से है और 'उकोसे सयपुहुत्त' उत्कृष्ट से एक समय में शतपृथक्त्व पुलाक हो सकते हैं २ सौ से लेकर ९ सौ तक का नाम शनपृथक्त्व है। 'पुग्धपडिवन्नए पडुच्च सिय अस्थि लिय नस्थि' तथा पूर्व प्रतिपन्न पुलाकों की अपेक्षा से-जिन्होंने पुलाक अवस्था पहिले से धारण कर ली है ऐसे पुलाकों की अपेक्षा ले कदाचित् पुलास रोते है और कदाचित नहीं भी होते हैं। 'जह अस्थि' यदि होते हैं तो जहन्नेणं एक्को घा दो वा तिमि वा जघन्य खे एक अथवा दो अथवा तीन तक होते हैं एक समय में 'उक्कोसेणं लहरहपुहत्त' और उत्कृष्ट से दो हजार से लेकर ९ हजार तक एक समय में होते हैं। सय ५५ छ मनोवार नथी पर डाता, 'जइ अस्थि जहन्नेण एको वा दो वा तिल्नि वा नडाय छ, त वार ४ ५६ छ । छे, वा महाय છે, અને કોઈવાર ત્રણ પણ હોઈ શકે છે. આ કથન જઘન્યની અપેક્ષાથી કહેલ छ. 'उकोसेणं सयपुहत्त' Gष्टया ये समयमा शतपृथप पसार हो। थई छ. मेटले -साथी सई ने नवसे। सुधी ४ राई छ. 'पुवपडिवन्नए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि' तथा पूर्व प्रतिपन्न पुरानी अपेक्षाथीरो પહેલેથી પુલાક અવસ્થા ધારણ કરી છે, એવા પુલાકની અપેક્ષાથી કઈવાર Ya हाय छ, मन वा२ नथी ५५ होता 'जइ अत्थिन हाय छे. त'जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा' धन्यथी से समयमा से अथवा २ मया व सुधी डाय छे. 'उकोसेणं सहस्सपुहुत्तं' मने 68था હજારથી લઈને ૯ નવ હજાર સુધી એક સમયમાં હોય છે, તેમ સમજવું. भ० ३२
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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