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________________ प्रन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१२-३० अन्तरद्वारनिरूपणम् २३५ मन्तरमेकत्वापेक्षया प्रतिपाद्य अथ तेपामेव तदन्तरं पृथक्लापेक्षया वक्तुमाह'पुलाया णं भंते' इत्यादि, 'पुलायाणं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होई', पुलाकानां खल भदन्त कियन्तं कालं पुलाकत्वादीनामन्तरम् - व्यवधानं भवतीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'जहन्नेणं एक्कं समयं ' जघन्येन एकं समयमन्तरं भवति पुलाकानाम् उक्को सेर्ण संखेज्जाई वासाई उत्कर्षेण संख्यातान् वर्षानन्तरं भवति । 'बउमाणं भंते ! पुच्छा, बकुशानां खलु मदन्त ! कियत्कालमन्तरं भवतीति पृच्छा-प्रश्नः भगवानाह - गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा !' d. itar ! 'नत्थि अंतरं' नास्ति अन्तरम् वकुशानां व्यवधानकारणाभावा. दिति, 'एवं जाव कसायकुसीलाण' एवं यावत् कपायकुशलानाम् यावत्पदेन हे गौतम! स्नातक के अन्तर नहीं होता है । क्योकि उसका प्रतिपात नहीं होता है, इस प्रकार से यह अन्तर कथन पुलाक आदि को की एकता को लेकर किया गया है। अब इनकी अनेकता को लेकर अन्तर कथन इस प्रकार से है - इसमें गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है - 'पुलाया णं भंते ! केचइयं कालं अतरं होई' हे भदन्त ! पुलाकों का अन्तर कितने काल का होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोमा । जहनेणं एत्रक समयं उक्को सेणं, संखेज्जाई वालाई' हे गौतम ! पुलाकों का अन्तर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से संख्यातवर्षो का अन्तर-व्यवधान हो जाता है 'बरसार्ण भंते ! पुच्छ।' हे मदन्त । वकुशों का अन्तर किनने काल का होता है ? उत्तर में प्रभुश्रीं कहते है - 'नथि अंतर' हे गौतम ? व्यवधान के कारणों के अभाव होने से बकुशों में अन्तर नहीं होता है । 'एवं जाव સ્નાતકને અતર હાતું નથી કેમકે-તેના પ્રતિપાત હાતેા નથી. આ 'રીતે આ અન્તર કથન પુલાક વિગેરેના એકપણાથી કહેલ છે. હવે તેના અનેકપણાને લઈને અન્તર કથન કરવામાં આવે છે. તે આ પ્રમાણે છે. આમાં गौतमस्वामी प्रभुश्रीने येवु छे छे - 'पुलाए ण' भंते ! केत्रइयं काल अ ंतर' होइ' हे भगवन् पुसाअनुं अंतर उसा अजतु होय छे ? मा अश्नना उत्तरमा प्रलुश्री डे छे - 'गोयमा । जइन्नेणं एक्क' समय उक्कोंसेणं संखेज्जाई वासाइ' डे गौतम | युद्धाअनु अंतर धन्यथी शो समयनु मने उत्ष्टथी अतर सभ्यात वर्षातुं व्यवधान था लय हे 'वउसेणं भंते । पुच्छा' हे लगवन् मशीनु तर टिसा अजनुं होय हे ? या प्रश्नमा उत्तरभां अलुश्री मद्धे छे है- 'नत्थि अंतर" हे गौतम! व्यवधानमा अरोन भलाव होवाथी मञ्जुशोभा अतर हेतु नवी ' एवं जात्र कमायकुसीलानं '
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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