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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१२-३० अन्तरद्वारनिरूपणम् २३३ पुलाकत्वमासादयतीति प्रश्नः, भगवानाह- गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोगुहृत्तं उक्कोसेणं अणंत काल' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्पणानन्त कालम् जघन्यतो अन्तर्मुहूर्त स्थिश्वा पुनः पुलाको भवति उत्कर्पतस्तु पुनरनन्तेन कालेन पुलाकतामाप्नोतीति । कालानन्त्यमेव कालवो नियमयन्नाह-'अणंताओ' इत्यादि, 'अणंताओ ओपरिणी उस्सपिणीयो कालो' अनन्ता अवसपिण्युन्सपिण्यः काल. तोऽन्तरं भवति एतदेव क्षेत्रतोऽपि नियमयन्नाह-'खेत्तओ' इत्यादि, 'खेत्तभो अवड्रपोग्गलपरियट्ट देसूर्ण क्षेत्रतोऽपार्द्धपुद्गलपरावर्त्त देशोनम् क्षेत्रतः किञ्चि न्यूनापापुद्गलपरावर्तपर्यन्तमन्तरं भवति अपार्द्ध पुद्गलपरावर्तमिति कथमित्याह -तत्र तावत्पुद्गलपरावर्च. कथ्यते-केनापि पाणिना पतिपदेशं म्रि प्रमाणेन मरणसंख्यया यावता कालेन समस्तोऽपि लोको व्याप्यते तावताकलेन क्षेत्रतः पुद्गलकितने काल के बाद बह पुनः पुलाक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोथमा ! जहन्ने णं अंतोमुत्तं उक्कोसेणं अणतं कालं' हे गौतम ! पुलाक पुलाक हो करके पुनः कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त तक पुलाक अवस्था से रहित होने के बाद फिर से पुलाक हो जाता है और उत्कृष्ट से अनन्तकाल के बाद वह पुन पुलाक हो जाता है। इस प्रकार से यह अन्तर विरहकाल पुलाक का कहा गया है। अनन्तकाल में-'अणंताओ ओसप्पिणी उस्लप्पिणीओ कालओ' अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणीका अन्तर हो जाता है । 'खेत्तओ' क्षेत्र की अपेक्षा 'अबडपोग्गलपरिघट्ट देखणं' कुछ कम अपार्घ पुद्गल परावर्त का अन्तर हो जाता है। पुद्गलपरा. वर्त का स्वरूप इस प्रकार से है-कोई प्राणी आकाश के प्रत्येक प्रदेश में मरण करता हुआ जितने समय में अपने मरण से समस्त लोकाकाश के પછી તે ફરીથી પુલાક થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा । जहन्नेणं अंतोमुहत्त' उक्कोसेण अणंत कालं', गौतम ! yars પુલાક થઈને ફરીથી ઓછામાં ઓછા એક અંતમુહૂર્ત સુધી પુલાક અવસ્થાથી રહિત થયા પછી ફરીથી પુલાક થઈ જાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી અનઃકાળ પછી તે ફરીથી પુલાક થઈ જાય છે. આ રીતે આ અંતર-વિરહ કાળ yान ह्यो छे. 'अणंताओ ओस पिणी उस्सपिणीओ कालओ' अनन्त मक्सपिणी असणीनु मत२ / लय छे. 'खेत्तो' क्षेत्रनी पक्षाथी 'अवड्ढपोग्गलपरियट्ट देसूर्ण' ४४४ मोछ। सपा पुल परावत न म तर થઈ જાય છે પુગલ પરાવર્તનું વરૂપ આ પ્રમાણે છે-કોઈ પ્રાણી આકાશના પ્રત્યેક પ્રદેશમાં મર થકે જેટલા સમયમાં પિતાના મરણથી સઘળા લેક भ० ३०
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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