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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१३-२९ कालद्वारनिरूपणम् २३१ मुहर्तसमय स्तस्यान्त्यसमये अन्यः पुलाकत्वं प्रतिपन्न इत्येवं जघन्यत्वविवक्षायां द्वयोः पुलाकयोरेकस्मिन् समये सद्भावो भवत्यतो द्वयोः पुलाकयोरेकएव समयो भवति, द्वित्वेच जघन्यं पृथक्त्वं भवतीति 'उक्कोसेणं अतोमुहुत्तं' उत्कर्षेणान्त. मुहूर्तम् पुलाकस्य कालः यद्यपि पुलाका उत्कर्षेण एकदा सहस्रपृथक्त्तपरिमाणाः पाप्यन्ते तथापि अन्तर्मुहूर्त्तमात्र प्रमाणत्वात्तदद्वाया बहुत्वेऽपि तेषामन्तर्मुहूर्त मेव तत्कालः केवलं वहूनां स्थितौ यदन्तर्मुहूतं तदेकपुलाकस्थित्यन्त महत्ता न्महत्तरमिति ज्ञातव्यमिति । 'वउसेणं पुच्छा' बकुशः खलु भदन्त ! कालत: कियच्चिरं भवतीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वद्धं' सद्धिास् सर्वकालमित्यर्थः बकुशादीनां तु स्थितिकाल सद्धिा अंतोमुहत्त' उत्कृष्ट से एक अमर्मुहर्त तक रहते है । इसका तात्पर्य ऐसा है-एक पुलाक का जो अन्तर्मुहूर्त समय होता है उसले अन्त्य समय में दूसरा पुलाक हो जाता है, इस प्रकार दो पुलाकों का एक समय में सद्भाव पाया जाता है । इस सदभाव से अनेक पुलाकों का जघन्य काल एक ही समय आजाता है। तथा अनेक पुलाकों का जो उत्कृष्ट समय अन्तर्मुहूर्त कहा गया है सो उसका कारण ऐसा है कि अनेक पुलाक एक समय में उत्कृष्ट से सहस्त्रपृथक्त्व तक होते हैं । यद्यपि इस प्रकार से ये बहुत होते हैं परन्तु फिर भी इनका काल अन्तर्मुहर्त ही होता है । यह अनेक पुलाकों की स्थिति का अन्तर्मुहूर्त एक पुलाक की स्थिति के अन्तर्मुहूर्त से बड़ा होता है । 'बउसेणं पुच्छा' हे भदन्त ! अनेक बकुश कितने काल तक रहते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! सव्वद्धं' हे गौतम ! अनेक बकुश सब मे समय सुधी रहे छ. भने, 'उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त' vथी मे मतસ્હૂર્ત સુધી રહે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-એક પુલાકનો જે અન્તર્મુહૂર્ત સમય હોય છે. તેને અન્ય સમયમાં બીજો પુલાક થઈ જાય છે. આ રીતે બે પુલાકને સદ્ભાવ એક સમયમાં થઈ જાય છે. આ સભાવથી અનેક પુલાકે જઘન્ય કાળ એક થઈ જાય છે તથા અનેક પુલાકને ઉત્કૃષ્ટ સમય જે અંતર્મુહૂતને કહ્યો છે, તેનું કારણ એ છે કે–અનેક પુલાકે એક સયમાં ઉત્કૃષ્ટથી સહસ પૃથકત્વ સુધી થઈ જાય છે. જો કે આ રીતે આ ઘણું હોય છે, તે પણ આને કાળ અન્તર્મુહૂર્તાને જ હોય છે. આ અનેક પુલાકોની સ્થિતિનું અંતર્મુહૂર્ત એક પુલાકની સ્થિતિના અંતમુહૂર્તથી મોટું હોય છે. 'बउसेणं पुच्छा' लगवन् भने ५ eal m सुधी २९ छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४६ छ -'गोयमा ! सव्वद्ध" गीतमा भने
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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