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________________ २५४ भगवतीसूत्र सरागत्वेऽपि निःसङ्गताया अपि शास्त्रे प्रतिपादितत्वात् । यद्वा नो संज्ञा इत्यस्य ज्ञानसंज्ञेति नाम तत्र ज्ञानसज्ञायां पुलाकनिग्रन्थस्नातका उपयुक्ता भवन्ति ज्ञानप्रधानोपयोगवन्तः, न पुनराहारादिसंज्ञोप्यु का भवन्ति, बकुशादयस्तु नोसंज्ञा. तथा संज्ञा, उभयोरुपयोगवन्तो भवन्तीति भावः 'बउसे गं भंते ! पुच्छा वकुश: खलु भदन्त । किं संज्ञोपयुक्तो भवेत् नोसंज्ञोपयुक्तो वा भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सन्नोवउत्ते वा होज्जा नो सन्नोवउत्ते वा होज्जा' संज्ञोपयुक्तो वा भवेत् नोसंज्ञोपयुक्तो वा भवेदिति । 'एवं पडि सेवणाकुसीलेवि' एवम्-वकुशवदेव प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि संज्ञोपयुक्तो पर भी सर्वथा आसक्ति रहितता हो ही नहीं सकती है ऐसा नियम नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि बकुश आदि में सरागता होने पर भी निःसङ्गना का भी प्रतिपादन शास्त्र में किया गया है। अथवा'नो संज्ञा' इसका नाम ज्ञान संज्ञा ऐसा भी हैं । इस अपेक्षा ज्ञान संज्ञा में पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये उपयुक्त होते हैं अर्थात् इनका उप. योग ज्ञान प्रधान होता है। आहारादि संज्ञा प्रधान नहीं होता है? घकुश आदि तो नो संज्ञोपयुक्त तथा संज्ञोपयुक्त दोनों प्रकार के होते हैं। अर्थात् वे नो संज्ञा और संज्ञा दोनों के उपयोग वाले होते हैं। ____'बउसेण पुच्छा' हे भदन | बकुश क्या संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नो संज्ञोपयुक्त होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा । सन्नीयउत्ते वा होज्जा, नो सन्नोवउत्ते वा होजा' हे 'गौतम ! यकुश संज्ञोपयुक्त भी होता है और नो संज्ञोपयुक्त भी होता है। ‘एवं पडि. શકતું નથી. એ નિયમ કહી શકાતું નથી કેમકે–બકુશ વિગેરેમાં સરગ પણું હોવા છતાં પણ શાસ્ત્રમાં નિ સંગતાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. मथवा 'नो संज्ञा' तु नाम ज्ञानसंज्ञा मे ५ छे. ते अपेक्षाय ज्ञान સંજ્ઞામાં પુલાક, નિન્ય અને સ્નાતક એ ઉપયુક્ત હોય છે. અર્થાત્ તેમને ઉપયોગ જ્ઞાનપ્રધાન હોય છે. આહાર વિગેરે સંજ્ઞાપ્રધાન હોતો નથી. બકુશ વિગેરે તે સંજ્ઞોપયુક્ત તથા સંશોપયુક્ત આ બંને પ્રકારના હોય છે, અર્થાત્ તેઓ ને સંજ્ઞા અને સજ્ઞા બન્નેને ઉપગવાળા હોય છે. 'वउसे णं पुच्छा' में भगवन् श शुसज्ञोपयुत हाय छे ? मया ना सज्ञोपयुक्त डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री ४३ छ -'गोयमा ! सन्नोवउत्ते वा होज्जा, नोसन्नावउत्ते वा होज्जा' हे गौतम! पश सज्ञो. पयुक्त ५५ डाय छ, भने नासज्ञोपयुत पसाय छे. 'एवं पडिसेवणा
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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