SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२५ उ.६४०१० विंशतितम परिभाणद्वारम् कर्मप्रकृतीनां वंधको वा भवति वकुशः, 'अहवहवधर वा' अष्टविध कर्मप्रकृतीनां बन्धको वा भवति । 'सतर्ववमाणे आउ जाओ सत्तकम्मपगडीओ वंबई'- सप्तः कर्मप्रकृतीवघ्नन् आयुष्कवर्जिताः सप्तकर्मपकृती बध्नाति वकुशः, 'अट्ठ बंधमाणे पडिपुन्नाओ अट्ट कम्मपगडीओ बंबइ' अष्टकर्मप्रकृती बघ्नन् परिपूर्गाः सर्वा अष्ट कर्मप्रकृतीबध्नाति बकुशः, त्रिभागावशेषायुषो हि जीवा आयुषो वन्धनं कुर्वन्तीति त्रिभागद्वये आयुषो बन्धनं कुर्वन्तीति कृत्वा बकुशः सप्तानामष्टानां वा फर्मणां बन्धको भवतीति । 'एवं पडि सेवण कुसीलेवि' एवम्-बकुशवदेव प्रतिसेवनाकुशीकोऽपि सशानामष्टानां वा कर्मप्रकृतीनां बन्धको भवतीति । 'कसायकुपीले. कहते हैं-'गोयमा ! सत्तविहवं भए वा अविस्य त्रए चा' हे गौतम ! वकुश के सात प्रकृतियों का अथवा आठ कर्मप्रकृतियों का पन्ध होता है। 'सत्त बंधमाणे आउथवज्जाओ सत्तारूमपगडीओ बंधई जब उसके सात कर्मप्रकृतियों का धन्ध होता है, तब वह आयु कर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृत्तियों का धन्य करता है । 'अद्वयं बमाणे पडि पुनाओ अटकसत्रपगडीओ बंधह' और जब उसके आठकर्म प्रकृतियों का बन्ध होता है-तब मह लम्पूर्ण आठ जर्म प्रकृतियों का धन्ध करता है । जीवों को अगले सबकी आयु का बन्ध वर्तमानकाल आयु के विभाग में होता है। यदि विभाग में आयु का बन्ध न हो तो अव: शिष्ट तृतीय भाग में जब दो भाग समाप्त हो जाते हैं तब आयु का बन्ध होता है विन्तु आदि के दो भागों में आयु का बन्ध नहीं होता है, इसी विचार को लेकर बचश यात अशा आठ कर्म प्रकृतियों का बन्धक कहा गया है । 'एवं एडिसेवणालीले वि' इसी प्रकार सा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री ४ छ 3-'गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अविह. बंधए वा' 8 गौतम ! महेशने सात प्रतिये न य मा तियाना मध हाय छे. 'सत्त वधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ बधई' જ્યારે તેને સાત કર્મ પ્રકૃતીયાને ન ધ થાય છે, ત્યારે તે આયુકમને છોડીને माडीमा सात मतिना ५५ ४२ छ 'अट्ठ बंधमाणे पडिपुन्नाओ अ सम्म पगडीओ बंधइ' भने न्यारे ते माह भ प्रतियाना ५५ थ य छ, त्यारे તે સંપૂર્ણ આઠ કર્મ પ્રકૃતિને બધ કરે છે જેને આયુનો બંધ ત્રણ ભાગોમાં હોય છે. જે ત્રણ ભાગમાં આયુને બંધ ન હોય તે બાકીના ત્રીજા ભાગના બે ભાગ જ્યારે સમાપ્ત થઈ જાય છે, ત્યારે આયુને બંધ થતું નથી. આજ વિચારને લઈને બકુશને સાત અથવા આઠ કમ પ્રકૃતિ भ० २५
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy