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________________ ર૭ર भगवती • , अष्टादशं कपायद्वारमाह-'पुलाए णं भंते !' पुलाकः खलु भदन्त ! 'सकसाई अफसाई होज्जा' सापायी भवेद अपाई वा भवेत् इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'समसाई होज्जा णो अकसाई होज्जा' पुलाफः सकपाधी-कपायवान् भवेत् पुलाकस्य कपायाणां क्षयस्य अथवोपशमस्याऽभावादिति नो अपायी-फपायरहिनो भवेदित्युत्तरम् पुनः प्रश्नयति 'जइ सकशाई से णं मंते ! कइमु कलए होज्जा' यदि स पुलाकः सकपायी भवेत् तदा स खल भदन्त । कतिपु कपायेषु भवेत्-कियत्संख्यककपायवान् भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चउसु कोहमाणमायाको भेनु होज्जा चतुपु क्रोधमानमायालोभेषु भवेत् स पुलाकः । एवं वउसेवि' एवं-पुलाकादेव बकुशोऽपि बकुशः सकपायी अपायी वा १८ वा कषायद्वार ____ 'पुलाए णं भंते ! सकसाई अकलाई होज्जा' हे भदन्त ! पुलाक कषायवाला होता है अथवा कषायवाला नहीं होता है ? हमके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! सकसाई होज्जा, णों अकसाई होज्जा' हे गौतम ! पुलाक कषायवाला होता है। कषाय से रहित नहीं होता है। क्योंकि पुलाक के कषायों के क्षय अथवा उपशम का अभाव रहता है इसलिये वह कषायसहित होता है। 'जह सकसाई से णं भंते ! कासु कसोएस्सु होज्जा' हे भदन्त ! यदि वह कषाय सहित होता है तो वह कितनी कषायोंवाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! चउँसु कोहमाणमायालोमेसु होज्जा' हे गौतम ! वह क्रोध मान, माया और लोभ इन चार कषायोंवाला होता है एवं उसे वि' इसी प्रकार से बकुश साधु भी क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार અઢારમા કષાયદ્વારનું કથન 'पुलाए णं भते | सकसाई अकसाई होज्जा' लगवन् सा पायवाणा હોય છે? અથવા કષાય વિનાના હેય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે छ, है- गोयमा! सकसाई होज्जा, णो अकसाई होज्जा' हे गौतम | yals કષાયવાળા હોય છે, કષાય વિનાના હોતા નથી કેમકે-પુલાકને કષાયના क्षयोपशमन मला हे . तेथी ते पाय सहित हाय छे. 'जइ सकसाई से णं भंते ! कइसु कसाएसु होजा' 8 लान् ते ४ाय सहित डाय छ ? તે તે કેટલા કષાવાળા હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે -गोयमा! चउसु कोहमाणमायालोभेसु होज्जा' हे गौतम! ते ओथ, भान भाया भने म मा यार षायावा डाय . 'एक बउसे वि' स शत બકુશ સાધુ પણ ક્રોધ, માન, માયા અને લેભ આ ચાર કષાવાળા હોય
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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