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________________ भगवतीस १७० यावत् लिन्थिः । अत्र यावत्पदेन वकुशमतिसेवनाकुशीलकपायकुशीलानां संग्रहोभवति तथा च बकुशादारभ्य निग्रन्थान्ताः सर्वेऽपि विविधमनोवाकायात्मकयोगपन्ती भवन्तीत्यर्थः । 'सिणाए-णं पुच्छा' स्नातकः खलु पृच्छा हे भदन्त ! हलातका सयोगी भवति अयोगी वा भवति इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सजोगी वा होज्जा-अजोगी वा होज्जा' सयोगी, या भवेत् अयोगी वा भवेत् । 'जा सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा सेसं. जहा पुलागस्स' यदि सयोगी भवेत् किं मनोयोगी भवेत् शेषं यथा पुलाकस्य पुलाकमकरणे यथा कथितं तथैव इहापि सर्वमवगन्तव्यम् मनोयोगी भवेत् वचो. योगी भपेत् काययोगी च भवेदिति । इति योगद्वारम् १६ घाला भी होता है, बचनयोग वाला भी होता है और काययोग पाला भी होना है। 'एवं जाव णियंठे' इस प्रकार का कथन यावत् निर्गन्ध तक जानना चाहिये । यहां यावत्पद से 'यकुश का प्रतिसेवनाकुशील का और कषायकुशील का' संग्रह हुआ है । तथा च चक्रश से लेकर निग्रन्थ तक के समस्त साधु त्रिविध योगवाले होते हैं। 'सिणाए णं पुच्छा' हे भदन्त ? स्नातक सयोगी होता है अथवा अयोगी होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गीयमा सजोगी वा होज्जा अजोगी वा होज्जा' हे गौतम । स्नातक सयोगी भी होता है और अयोगी भी होता है । 'जह सयोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा, सेस जहा पुलागल्त' हे सदन्त ! यदि वह स्नातक योगसहित होना है तो क्या वह मनोयोग सहित होता है ? अथवा वचनयोग सहित होता है ? अथवा काययोगसहित होता है ? इस प्रकार से किये गये इस प्रश्न का उत्तर पुलाक के सम्बन्ध में दिये गये उत्तर के હે ગૌતમ! તે મને ગવાળા પણ હોય છે, વચન ગવાળા પણ હોય છે. અને ययोगदाणा पडाय छ ‘एवंजाव णियंठे' मा शतनु यावत् पशना प्रतिસેવનાકુશીલના, કષાય કુશીલના અને નિગ્રન્થના કથન સુધી સમજવું જોઈએ. એટલે કે બકુશથી લઈને નિર્ચ સુધીના સઘળા સાધુઓ ત્રણ પ્રકારના યોગ पाणाय छे. 'सिणाए णं पुच्छो' हे मावान् स्नात सयोगी हाय छ१३ अयोगी डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री । छ-'गोयमा | सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा' 3 गौतम ! स्नात सयेगी पडाय छ, भने भयोगी पाय हाय छे. 'जइ सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा सेसं जहा पुलागस्व' है सपन्ने त नात या सहित डाय छे, तY તે માગ સહિત હોય છે? અથવા વચનગ સહિત હોય છે? અથવા કાચોગ સહિત હોય છે ? આ પ્રમાણે કરેલ પ્રશ્નને ઉત્તર ગુલાકના સંબંધમાં
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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