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________________ भगवतीसरे न्यानुत्कर्षेणानुत्तरविमाने वृत्पद्येत अत्र यावत्पदेन 'नियंटे णं भंते ! कालगए समाणे किं गई गच्छइ ? गोयमा ! देवगई गच्छद, देवगई गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववज्जेज्जा, वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा, जोइसिण्मु उवरज्जेज्जा, वेमाणिएमु उगवज्जेज्जा ? गोयमा ! नो भवण० नो वाण० नो जोइसि० वेमाणिएसु उववज्जेज्जा।' छाया--निग्रंथः खलु भदन्त ! कालगतः सन् कां गति, गच्छति ? गौतम ! देवगति गच्छति । देवगति गच्छन् किं भवनवासिषु उत्पद्येत वानव्य न्तरेपूस्पधेत ज्योति के पूत्पद्येत वैमानिकपृत्पद्येत, गौतम ! नो भवनवासिपु नो पानव्यन्तरेषु नो ज्योतिष्केपु वैमानिके पूत्पखेत एतत्पर्यन्तपुलाकपकरणस्य संग्रहो अजघन्य और अनुत्कृष्ट स्थिति से अनुत्तर विमान में ही उत्पन्न होता है । यहां यावत्पद से 'नियंटे णं भंते' इत्यादि निर्ग्रन्थ पद को लेफर पुलाक के पाठ का संग्रह करना चाहिये जिसमें गौतमस्वामी का प्रश्न है कि निन्ध कालगत होकर किस गति में जाना है ? उत्तरमें भगवान् कहते हैं-देवगति में जाना है । उस पर गौतमस्वामी प्रश्न • करते हैं कि यह देवगति में जाता है तो क्या यह भवनपति चानव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देवगति, इन में से किस देवमति में उत्पन्न होता है ? उत्तर में भगवान कहते हैं हे गौतम वह भवनपति वान. घन्तर और ज्योतिष्क में नहीं उत्पन्न होता है किन्तु वैमानिकों में उत्पन्न होता है। यह सम पुलाक प्रकरण गत पाठ यहाँ गृहीन हुआ है। 'सणाए णं भते ! कालगए समाणे किं गई गच्छ।' गौनामस्वामी ने इस पाठ द्वारा प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! स्नातक जय ४ पलथाय छे. गडी यां यावत्पथी 'नियटे ण भंते !' या निय-पान લઈને પુલાકના પાઠને સંગ્રહ થયેલ છે. જેમા ગૌતમસ્વામીએ પૂછયું છે કે કાલગત થયેલ નિર્ચન્થ કઈ ગતિમાં જાય છે? ઉત્તરમાં ભગવાન કહે છે. દેવગતિમાં જાય છે તેના પરથી ફરીથી ગૌતમસ્વામી પૂછે છે કે–તે દેવગતિમાં જાય છે, તો શું તે ભવનપતિ વાનવ્યન્સર જ્યોતિષ્ક અને વૈમાનિક આ પૈકી કઈ દેવગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં ભગવાન કહે છે કેહે ગૌતમ તે ભવનપતિ વાન વ્યત્તર અને તિષ્કમાં ઉત્પન્ન થતા નથી પરંતુ વૈમાનિકમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રમાણેને પુલાક પ્રકરણને સઘળે. પાઠ ગ્રહણ કરી છે. सिणाए णं भंते ! कालगए समाणे कि गई गच्छइ' गौतमस्वाभीसे भा પાઠદ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કે-હે ભગવદ્ સ્નાતક જ્યારે કાલધર્મ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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