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________________ भगवतीसूत्र बकुशवदेव वक्तव्य इत्यर्थः, 'एवं कसायकुसीले वि' एवं वकुशवदेव कषायकुशीलोऽपि वक्तव्यः । 'णियंठो सिणाओय जहा पुलाओ' निग्रन्थः स्नातकश्च यथा पुलाकः, पुलाकवदेव एतौ निग्रन्थस्नातकौ वक्तव्यों इत्यर्थः । पुलाकापेक्षया एतयोःलक्षण्यं पुनराह-'णवरं' इत्यादि, 'गावरं एएसि अमहियं साहरणं भाणियव्यं' नवरम्-केवलम् एतयो निग्रन्थस्नातकयो रभ्यधिकं संहरणं भणितव्यम् पुलाकस्य पूर्वोक्तरीत्या संहरणं न भवतीति कथितम्-एतयोश्च संहरणं संभवतीति कृत्वा संहरणं वक्तव्यम्-निर्ग्रन्थस्नातकयोः संहरणापेक्षया सर्वकाले सदभावः कथितः, असौ पूर्वसंहतयो निग्रन्यस्नातकत्वमाप्तौ सत्यामेव तदपेक्षया ज्ञातव्यः, यतो वेदरहितानां साधूनां संहरणं न भवतीति तदुक्तम् । में किया गया है सो इसी प्रकार का कथन अनिलेवना कुशील के सम्बन्ध में भी करना चाहिये। 'एवं कलायकुसीले वि' कषाय कुशील के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये । 'णियंठो सिणाओ थ जहा पुलाओ' पुलाक साधु के कथन के जैसा कथन निर्ग्रन्थ और स्नातक साधुओं के सम्मन्ध में करना चाहिये । परन्तु पुलाक के कथन की अपेक्षा जो इन दोनों के कथन में भिन्नता है वह इस प्रकार से है -'णवर एएसि अमहिथं साहरणं भाणिय' कि इनका संहरण अधिक कहना चाहिये । पुलाक का पूर्वोक्तरीति ले संहरण नहीं होता है। ऐसा कहा गया है और इनका संहरण संभदित होता है अतः इनका संहरण कहना चाहिये। नियन्य और स्नातक का संहरण की अपेक्षा सर्वकाल में लदभाव कहा गया है सो यह पहिले संहृत हुए उनके निर्गन्धावस्था की और स्नातक अवस्था की प्राप्ति हो जाने से પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું કથન પ્રતિસેવના કુશી सना सभा ५९ ४२वु नये. 'एवं कसायकुसीले वि' षाय शासना समयमा ५५ मे प्रभातुं ४थन सम४यु' 'णियठों सिणाओय जहा पुलाओं' પુલાક સાધુના કથન પ્રમાણેનું કથન નિગ્રંથ અને સ્નાતક સાધુઓના સંબં. ધમાં કરવું જોઈએ. પરંતુ પુલાકના કથનની અપેક્ષાથી આ બન્નેના કથનમાં मिन्ना ' छ. ते मा प्रमाणे छ. 'णवरं एएसि अमहिय साहरणं भाणियव्वं' તેઓનું સંહરણ વધારે કહેવું જોઈએ. પુલાકનું સંહરણ પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે હેતું નથી. તેમ કહ્યું છે. તેઓનું સંહરણ સ ભવિત હોય છે. તેથી તેનું સંહરણ કહેવું જોઈએ. નિર્ગથ અને સનાતના સંહરણની અપેક્ષાથી સર્વ કાળમાં સદ્ભાવ કહેલ છે. તે પહેલા સંહત થયેલા તેઓને નિગ્રંથ અવસ્થાની
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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