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________________ भगवतीसत्रे स्नातकः खलु भदन्त ! कतिषु ज्ञानेषु भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । मापानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयगा' हे गौतम ! 'एगंमि केवलनाणे होज्जा' एकस्मिन् केवल. ज्ञाने भवेत् एकरिमन् केवलज्ञाने भाति स्नातक केवलज्ञानवान एव भवतीत्यर्थः । आभिनिवोधिकादिज्ञानप्ररसाशत् ज्ञानविशेपभूतं विशेषरूपेण दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह'पुलाए णं भंने इत्यादि, 'पुलाए गं भंते ! केवयं मुयं अधिज्जेज्जा' पुलाक: खलु भदन्त ! कियन्तं श्रुनमधीयीत कियत्संख्यक श्रुताभ्यासी भवति पुलाक इति प्रश्नः । भगान ह गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्ने णं नयमस्स पुरस्स नईयं आयासत्थु जयन्येन नवमस्य पूर्वस्य तृतीयमाचारवस्तु नवसपूर्वस्य तृतीयगाचारवस्तुप्रकरणपर्यन्तगधीयीत इत्यर्थः । 'उकोसेणं णवपुयाई अहिज्जेजा' उत्कग नवपूर्णागि अपीयीत-बउसे पुच्छा वकुशः खल्लु मदन्त ! कियन्त श्रुतमधीयीन इति पृच्छा-श्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अट्ठपदयणमायाओ' जघन्येनाष्ट प्रश्चनमातः, पञ्चयावत् चार ज्ञानों वाला होता है । 'लिणाए णं पुच्छा' हे सदन्त ! स्नातक साधु शितने जानां वाला होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री पाहते हैं-'गोयना ! एगंमि केवल नाणे होज्जा' हे गौतम ! स्नातक साधु एक केवलज्ञान पाला ही होता है । 'पुलाएणं भंते ! के जाइयं सुयं अहिज्जेज्जा' हे भदन्त ! पुलाक शिनने श्रुन का अभ्याली होता है ? हलके उत्तर में प्रसुश्री कहते हैं-गोषमा ! जहन्नेणं नवाना पुचस्स तयं आधार वायु' हे गौतम ! पुलाक कम से कम नौवें पूर्व का तीसरा जो आचार वस्तु प्रशारण है वहीं तक पढता है और 'उस्कोलेणं णव. पुम्बाई अरिज्जेज्जा' उत्कृष्ट से पूरानो पूर्व तक पढना है। पारसे पुच्छा हे भदन्त । यकुग कितने श्रुस का अभ्यासी होता है ? इसके उत्तर में ____ मिणाए ण पुच्छ।' सावन स्नात साधु या ज्ञानावामा खराय छ ? Aप्रश्नना उत्तर प्रशुश्री ५ छ -'गोयमा एगमि केवलनाणे होज्जा' गीतम! नात साधु ४ अवज्ञानवाणा १ सय छे. 'पुलाए णं भंते ! केवडय सुत्र अहिज्जेज्जा' सागवन् पुसा डेटसा नना मल्यासी डाय छ ? या प्रश्ना 1२i अमुश्री ४९ छ ,-'गोयमा ! जहन्नेणं नवमस्य पुवस्स तईय खायाराथु' गौतम ! घुसा मेछामा छ। नवमा पूर्वनुत्री २ भाया२ १२तु ॥४२५ छ, त्यो युधानी मया ४२ छे भने 'उकोसेणं णव पुबाई अहिज्जेज्जा' रथी पूरा नए पूर्व सुधीन। सपास ४२ छे. 'बउसे पुन्छ।' ले पन् । ३८॥ श्रुतना मण्यासी डाय ७१ मा प्रशना त्तरमा प्रभु ४९ छ -'गोयमा! जहन्नेणं अद्र पवयणमायाओं'
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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