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________________ भगवतीस्त्रे कर्वशवदेव मृदक-गुरुक-लघुकानामपि-अल्पबहत्वं ज्ञातव्यमिति। 'सीयजसिण-निद्ध-लुक वाणं जहा बन्नाणं तहेव शीतोष्णस्निग्धरूक्षाणां स्पर्शानां-यथा हर्णानां कालादीनामल्पबहुत्वम् तथैव-अल्पबहुत्वमवगन्तव्यमिति ।।मू०६॥ . पुद्गलानेव कृतयुग्मादि धर्य निरूपयन्नाह -परमाणुपोग्गले णं' इत्यादि। मूलम्--परमाणुपोउगले गं भंते ! दबट्रयाए किं कडजुम्मे ओए दावरजुम्मे कलिओगे? गोयमा ! नो कडजुम्मे नो तेओगे. मो दावरजुम्मे कलिओगे। एवं जाव अणंतपएसिए खंधे। परमाणुपोग्गला गंभंते ! दव्वट्रयाए किं कडजुम्मा पुच्छा? गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाब सिय कलिओगा विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा नो तेओगा नो दावरजुम्मा कलिओगा। एवं जाव अणंतपएलिया खंधा। परमाणुपोग्गले णं भंते! पएसट्टयाए कि कडजुम्मे पुच्छा ? गोयमा! नो कडजुम्मे नो तेओगे नो दावरजुम्मे कलिओगे। दुप्पएसिए पुच्छा ? गोयमा! नो कडजुम्मे नो तेओए दावरजुम्मे नो कलिओगे। तिप्पएसिए पुच्छा गोयमा! नो कडजुम्मे तेओए नोदावरजुम्मे नो कलिओए चउप्पएसिए पुच्छा गोयमा! कडजुम्मे नो तेओए मोदावरजुम्मे नो कलिओगे। पंचपएलिए जहा परमाणुपांग्गले। छप्पएसिए गुण अधिक हैं और 'ते चेव पएसट्टयाए अणतगु गा' ये ही पुद्गल प्रदेशरूप से पूर्व की अपेक्षा अनन्तगुणे अधिक हैं। 'एवं मउघ गरुष लष्ठयाणवि अप्पा बड्यं' इनी प्रकार से मृत गुरु एवं लघु स्पर्शवाले पुद्गलों के अल्प बहुत्व के सम्बन्ध में भी कथन करना चाहिये। 'सिय उसिण निद्ध लुक्खाणं जहा बन्नाणं तहेव' तथा शीत उपस्निग्ध और रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों का अल्पवहुत्व कालादिकरणों के अल्पबहुत्व जैसा जानना चाहिये ॥सू०८॥ ४२तां मनतम वधारे छे ,एवं मउय, 'गरुष लहुयाण' वि मप्याबहुय' આજ પ્રમાણે મૃદુ-કેમળ ગુરૂ અને લઘુ, સ્પર્શવાળા પુદ્ગલેના અપ म५५ समयमा ५ ४थन ४ मे. 'सिय उसिण निद्ध लुक्खाणं जहा वन्नाण तहेव' तथा शीत-81, Go-२म, 4-सिवा मने રૂક્ષ-ખરબચડા સ્પર્શવાળા પુદ્ગલેનું અલ્પ બહુપણુ કાળા વિગેરે વર્ણના અ૬૫બહુપણાના કથન પ્રમાણે સમજી લેવું. સૂ) ૮ -
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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