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________________ ७९२ -भगवतीसूत्रे खलु भदन्त ! मत्यज्ञानपर्यायैः किं कृतयुग्मः व्योजादिरूपो वेति प्रश्नः ? उत्तरमाह 'जहा' इत्यादि । 'जहा-आभिणियोहियणाणपज्जवे हिं तहेव दो दंडगा' यथा-आभिनिवोधिज्ञानपर्याय तथैव-द्वौ दण्डको एकत्वपृथक्त्वाभ्यां वक्तन्यौ मस्यज्ञान पर्यायैरपि । 'एवं सुयअन्नाणपनवेहि वि' एवं श्रुताज्ञानपर्यायैरपि हो दण्डको एकत्वपथक्वाभ्याम्-एकवचन-बहुवचनाभ्यां वक्तव्याविति । एवं विभंगनाणपज्जवेहि वि-एवं विभङ्गज्ञानपीयरपि द्वौ दण्डको एकत्वपृथक्त्वाभ्यां भंतें । मह अन्नाणपज्जवेहि किं फडजुम्मे०' इस सूत्रद्वारा श्रीगौतम स्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है, कि हे भदन्त ! एक जीव मति अज्ञान की पर्यायों द्वारा क्या कृतयुग्मरूप होता है ? अथवा योजरूप होता है? अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्योजरूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'जहा आभिणियोहियणाणपज्जवेहिं तहेव दो दंडगा' हे गौतम! जिस प्रकार से आभिनियोधिकज्ञान पर्यायों द्वारा एक जीव के विषय में और अनेक जीवों के विषय में कृतयुग्मादिरूप होने के दो दण्डक एकवचन और बहुवचन को लेकर कहे गये हैं-उसी प्रकार से मति अज्ञानपर्यायों द्वारा एक जीव के विषय में और अनेक जीवों के विषय में कृतयुग्मादि रूप होने के दो दण्डक कहना चाहिये । एवं सुय अन्नागपज्जवेहिं वि' इसी प्रकार से श्रुन अज्ञान की पर्यायों द्वारा भी दो दण्डक जीव के एकवचन एवं बहुवचनको लेकर कहना चाहिये। ‘एवं विभंगनाणपज्जवेहिं वि' इमी प्रकार से विभंगज्ञान की । कि कडजुम्मे०' मा सूत्रद्वारा श्रीगौतभाभी प्रमुश्री मे पूछ्युं छे ?હે ભગવન એક જીવ મતિઅજ્ઞાનના પર્યાયે દ્વારા શું કૃતયુમ રૂપ હોય છે? અથવા જ રૂપ હોય છે? અથવા કાપરયુગમ રૂપ હોય છે? અથવા કલ્યાજ ३५ उय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री ९ ४-'जहा आभिणिबोहिय. णाणपज्ज वेहि तहेव दो दंडगा' गौतम ! २ प्रमाणे मालिनिमाधिज्ञान પર્યાય દ્વારા એક જીવન સંબંધમાં અને અનેક જીવોના વિષયમાં કૃયુમ વિગેરે રૂપ હોવ ના સંબંધમાં બે દડકે એક વચન અને બહુવચનને આશ્રય લઈને કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે મતિ અજ્ઞાન પર્યાય દ્વારા એક જીવન વિષયમાં અને અનેક જીના વિષયમાં કૃયુમાદિ રૂપ હોવાના સંબ ધમાં से वा असे. 'एव सुय अन्नाणपज्जवेहि वि' से प्रभार श्रुत. અજ્ઞાનના પર્યાય દ્વારા પણ જીવના એક વચન અને બહુવચનને આશ્રય साधन मे ४ वा नसे. 'एवं विभगनाणपज्जवेहि वि' से प्रभार વિર્ભાગજ્ઞાનના પર્યાય દ્વારા પણ એકવચન અને બહુવચનને આશ્રય લઈને
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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