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________________ भगवती सूत्रे केवलज्ञानपर्यायैः किं कृतयुग्मरूपः त्र्योः द्वापरयुग्मः कल्पोजो वेति प्रश्नः १ भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'कडजुम्मे-नो तेओगे'नोदावर जुम्मे नो कलिभोगे' कृतयुग्मो नो व्योजः, दो द्वापरयुग्मो नो कल्योजः । केवलज्ञानपर्यायाणां सर्वत्र चतुरग्रश्वमेव भवति, केवलज्ञानस्थानन्तपर्यायत्वात् - अवस्थितत्वाच्च केवलज्ञानस्य पर्याया:- अविभागपलिच्छेदरूपा एव ज्ञातव्याः, न तु तद्विशेषरूपा एकप्रकारकत्वात् केवलज्ञानस्येति । ' एवं मणुसेवि, एवं सिद्धे वि' एवम् - जीववत् मनुष्योऽपि सिद्धोऽपि मनुष्य - सिद्धौ उभावपि केवल ज्ञानपर्यायैः कृतयुग्मरूपावेव नतु - त्र्योजादिरूपौ भवत इति । 'जीवाणं भते ! जीव क्या केवलज्ञान की पर्यायों द्वारा कृतयुग्मरूप होता है ? अथवा ज्योजरूप होता है ? अथवा द्वापरयुग्मरूप होता है ? अथवा कल्पोजरूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! कहजुम्मे, नो तेओगे, नो दावरजुम्मे, नो कलिओगे' हे गौतम! केवलज्ञान की पर्यायों द्वारा जीव कृतयुग्मराशिरूप होता है । पर वह ज्यो जरूप नहीं होता हैं, द्वापरयुग्मरूप नहीं होता है और न कल्पोजरूप होता है । क्यों कि केवलज्ञान की पर्यायों की अनन्तता अवस्थित होती है अतः ऊसकी पर्यायों द्वारा जीव कृतयुग्मराशिरूप ही होता है। यहां जो केवलज्ञान की पर्यायें कही गई हैं वे अविभाग प्रतिच्छेदरूप ही होती है। उसके विशेषरूप नहीं होती हैं क्यो कि केवलज्ञान एकरूप ही होता है । 'एवं मणुसे वि एवं सिद्धे वि' इसी प्रकार से मनुष्य और सिद्ध ये दोनों भी केवलज्ञान की पर्यायों द्वारा कृत्र्युग्मरूप ही होते हैं ७० કૃનયુગ્મ રૂપ હોય છે ? અથવા યેાજ રૂપ હોય છે ? અથવા દ્વૈપરયુગ્મ રૂપ હાય છે ? અથવા કલ્યાજ રૂપ હાય છે ? આ પ્રશ્નના ૬ત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગોતમ स्वाभीने हे छे ! - गोयमा ! कड़जुरमे, नो तेओगे, नो दावरजुम्मे नो कलिછોને' હે ગૌતમ! કેવળજ્ઞાનના પર્યાયેદ્વારા છત્ર કૃતયુગ્મ રાશિ રૂપ હોય છે. પરંતુ તે ચૈાજ રૂપ કે તેા નથી. દ્વાપરયુગ્મ રૂપ પણ હાતા નથી તથા કલ્યેાજ રૂપ પણ હતેા નથી. કેમકે–કેવળજ્ઞાનના પર્યાયાનું અન’તપણુ હાય છે, જેથી તેના પાંચા દ્વારા જીવ કૃતયુગ્મરાશિ રૂપ જ હાય છે, અહીયાં જે કેવળજ્ઞાનના પર્યાયે કહ્યા છે, તે વિભાગ વિનાના પ્રતિચ્છેદ રૂપ જ હેાય છે. તેના विशेष ३५ होता नथी, भिडे ठेवलज्ञान ो ४ ३५ होय छे, 'एवं मणुस्से वि एवं सिद्धे वि' प्रमा मनुष्यो भने सिद्धो मे जन्ने व જ્ઞાનના પર્યાય દ્વારા કૃતયુગ્મ રૂપ જ હોય છે, યેાજ વગેરે રૂપ તા નથી.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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