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________________ भगवतीमत्र । पूर्वपश्चिमयोर्लम्बायमाना लोकाकाशश्रेणयः द्रव्यार्थतया कि संख्याताः-असं ख्याता:-अनन्ता वा भवन्तीति प्रश्न: ? भगवानाह- एवं चेव' एवमेव, यथा. कोकाशश्रेणयो न संख्याताः किन्तु असंख्याताः नाप्यनन्ताः तथैव-पूर्वपश्चिमयोलम्बायमाना लोकाकाशश्रेणयोऽपि न संख्याताः किन्तु-असंख्याताः असंख्यात. प्रदेशकस्वाल्लोकाकाशस्य नाप्यनन्ता इति भावः। . "एवं दाहिणोत्तराययाओ चि' एवं दक्षिणोत्तरायता अपि पूर्वपश्चिमलम्बायमानलोकाकाशश्रेणीवन-दक्षिणोत्तरयोलम्बायमानाः कोकाकाशश्रेगयो न संख्याताः नवा-अनन्ताः किन्तु असंख्याता एव भवन्तीति भावः, 'एवं उमहायतामो वि' एवमूर्धाध आयता अपि एवमेव पूर्व पश्चिमयोलम्बायमानलोकाकाशश्रेणीवदेव ऊर्वाधः प्रदेशेषु लम्बायमाना लोकाकाशश्रेणयोऽपि न संख्याताः न वा-अनन्ताः किन्तु असंख्याता एव भान्ति असंख्यातत्वात्-लोकाकाशस्येति । लोकाकाश के प्रदेशों की श्रेणियां हैं वे द्रव्यरूप से क्या संख्यात है? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभु श्री गौतमस्वामी से कहते हैं-'एवं चेव' हे गौतम ! पूर्व से पश्चिम तक जो लोकाकाश के प्रदेशों की श्रेणियां हैं वे द्रव्यरूप से असंख्यात ही हैं संख्यात अथवा अनन्त नहीं हैं। 'एवं दाहिणोत्तराययाओ वि' इसी प्रकार से दक्षिण से उत्तर तक जो लोकाकाश के प्रदेशों की श्रेणियां हैं वे भी है-अर्थात् वे द्रव्यार्थरूप से असंख्यात ही हैं। संख्यात अथवा अनन्त नहीं है। 'एवं उड़सहायताओ वि' इसी प्रकार से ऊच्चे से लेकर नीचे जो लोकाकाश के प्रदेशों की लम्बी श्रेणियां हैं वे भी असंख्यात ही हैं संख्यात अथवा अनन्त नहीं हैं। વન પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધીની લાંબી જે કાક શના પ્રદેશની શ્રેણી છે, તે દ્રવ્ય પણાથી શું સંખ્યાત છે? અથવા અસખ્યાત છે ? કે અનંત છે? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतम स्वामीन. ४ छ -'एव चेव' 3 गीतम! પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી જે લોકાકાશના પ્રદેશોની શ્રેણિ છે, તે દ્રવ્ય પણાથી અસંખ્યાત જ છે, સંખ્યાત અથવા અનંત હોતી નથી , एवं दाहिणोत्तराययाओ वि' से शत इक्षिथी उत्तर सुधी . શના પ્રદેશોની જે શ્રેણિ છે, તે પણ સમજી લેવી. અર્થાત્ તે દ્રવ્યપણાથી असभ्यात ४ छ सभ्यात मथवा सनत नथी. 'एव उडूढमहायताओ वि એજ પ્રમાણે ઉર્વ ઉપરથી લઈને નીચેના પ્રદેશોની લંબી શ્રેણિયે છે, તે પણ અસંખ્યાત જ છે, સંધ્યાત કે અનંત નથી.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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