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________________ प्रमेययन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि० ६४१ 'आयए णं भंते ! संठाणे कइपएसिए कइपएसोगाढे पन्नत्ते' आयेतं खलु भदन्त ! संस्थानम् कतिप्रदेशिक कतिप्रदेशावगाडं च प्रज्ञप्तम् इति-प्रश्नः। भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'आयएणं संठाणे तिविहे पन्नत्ते' आयतं खल संस्थान त्रिविधं त्रिप्रकारकं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा' तद्यथा-'सेढिआयए पयरायए घगायए' श्रेण्यायतं पतरायतं घनायतम्, तत्र श्रेण्याय-प्रदेशश्रेणीरूपम्, प्रतरायतं-कृतवि कम्भश्रेणीद्वयादिरूपम् घनायतं वाहल्यविष्कम्भोपेतमनेकवेगीरूपमिति तय त्रिवि धायतमध्ये प्रथममायत विभागद्वारेण दर्शयति-तस्थण' इत्यादि । 'तत्य णं जे से सेढिायते से दुविई पत्ते तब खलु यत् तत् श्रेयायतं तद् द्विविधं द्विपकारम् । पक्षप्तम् 'तं जहा भोयपपसिए य जुम्मपरसिए य तथथा ओजमदेशिकं च युग्मपदे शिकं च । 'तस्थ णं जे से ओयपएसिए' तत्र खल यत् तत् ओजदेशिक श्रेण्यायतम् 'आयए णं भंते । संठाणे कहपएसिए कह पएसोगाढे पन्नत्ते हे भदन्त ! आयत संस्थान कितने प्रदेशों वाला कहा गया है और आकाश के कितने प्रदेशों में उसकी अवगाहना कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा! आयएणं संठाणे तिविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! आयत संस्थान तीन प्रकार का कहा गया है 'तं जहा, जैसे-'सेदि आयए, पयरायए घणायए' श्रेण्यायत, प्रतरायत और घनायत इनमें प्रदेशों की श्रेणिरूप जो होता है वह श्रेण्यायत है । विष्कम्भश्रेणिरूप जो आयत होता है यह प्रतरायत है। मोटाई और विष्कम सहित अनेक श्रेणिरूप जो आयल होता है वह घनायत है । इनमें जो श्रेण्यायत होता है वह 'दुविहे पन्नत्ते' दो प्रकार का होता है। तं जहा' जैसे-'ओयपएलिए य जुम्मपएसिए य' एक ओज प्रदेशिक और दूसरा युग्मप्रदेशिक 'तत्थ णं जे से ओयपए 'आयए ण भंते ! सठाणे कइपएसिए कह पएसोगाढे पन्नत्ते । सन् આયત સસ્થાન કેટલા પ્રદેશેવાળું કહેલ છે ? અને આકાશના કેટલા પ્રદેશોમાં तनी भगाना ही छे ? २मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु श्री ४७ छ -'गोयमा ! आयए ण संठाणे तिविहे पन्नत्ते' हे गौतम! मायत सस्थान त्रय प्रसार ह्य छतं जहा' मा प्रभाछे सेढि आयए, पयरायए, घणायए' श्रेणी मायत, પ્રતરાયત, અને ઘનાયત, તેમાં પ્રદેશોની શ્રેણી રૂપ જે હોય છે, તે શ્રેણ્યાયત કહેવાય છે વિષ્કન્મ શ્રેણીરૂપ જે આયત–લાબું હોય છે, તે પ્રતરાયત કહે થાય છે મોટાઈ અને વિકલ્મ સહિત અનેક શ્રેણીરૂપ જે આયત હોય છે. તે धनायत छ तभा २ श्रयायत डाय छ, त 'दुविहे पन्नत्ते' में प्रा२नु उत्य छ तं जहा' मा भाग छे. 'ओयपएसिए य जुम्मपएसिए य' ४ या प्रदेश वामन भानु युभ प्रशवायु तत्थ णं जे से ओयपएसिए' तमास। भ० ८१
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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