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________________ ६५० भगवतीस्त्रे अन्यदपि नवप्रदेशिकमतरद्वयं स्थाप्यते इत्येवं क्रमेण सप्तविंशतिप्रदेशिक चतुरखं संस्थानं भवतीति । 'उको सेणं अर्णतपएसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिकं तथैव असंख्यातंप्रदेशावगाद चेत्यर्थः । 'तत्थ पंजे से जुम्मपएसिए' तत्र खलु यत् सत् युग्मपदेशिक 'से जहण्णेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगादे पण्णत्ते' तत् युग्मपदे. शिकम् जघन्येनाष्टपदेशिक तथा अष्टप्रदेशावगाद च मज्ञतम् आ.नं. १३ ०... अस्योपरि अन्यश्चतुम्मदेशिकः प्रतरो दीयते, इत्येवं प्रकारेणाहप्रदेशिको . भवतीति । 'उकोसेणं अणंतपएसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिक ० ० तथैव असंख्यातपदेशावगाह चेत्यर्थः, इति चतुरस्रसूत्रम् । आ.नं. १३ प्रतर स्थापित करना चाहिये । इस क्रम से २७ सत्ताईस प्रदेशों वाला चतुरस्रसंस्थान होता है । 'उक्कोसेणं अणंतपएसिए तहेव तथा उस्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला है और असंख्यात आकाशप्रदेशों में इसका अवगाह है। 'तस्थ णं जे से जुम्मपएसिए' तथा उनमें जो युग्मप्रदेशिक चतुरस्त्रसंस्थान है 'से जहन्नेणं अट्ठपएसिए अट्ठपएसोगाढे' वह जघन्य से आठ प्रदेशों वाला है और ८ आठ आकाश प्रदेश में उसका अवगाह होता है। इसका आकार सं. टीका में आ० नं १३ से दिया है, । इस चतुष्प्रदेशिक प्रतर के ऊपर अन्य चार प्रदेशों वाला दूसरा प्रतर स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार से आठ प्रदेश का युग्मप्रदेशिक घनचतुरस्र बन जाता है। 'उक्कोसेणं अणंतपएसिए तहेव' उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में इसकी अवगाहना होती है। બીજા બે અન્ય નવ પ્રદેશવાળા પ્રતરો સ્થાપવા જોઈએ આ ક્રમ પ્રમાણે २७ सत्यापास प्रशाणुयतु२ख संस्थान थाय छे 'उकोसेणं अणंतपएसिए तहेव' तय थी ते सनत प्रदेशापाणु छे. अने असण्यात 24IRA प्रदेशमा तना सह डाय छ 'तत्थ ण जे से जुम्मपएसिए' तथा तभाने युभ प्रशाणु यतुरन सस्थान छ, 'से जहन्नेणं अटूपरसिए अट्ठपएसोगाढे' તે જઘન્યથી આઠ પ્રદેશોવાળું અને આઠ આકાશ પ્રદેશોમાં તેને અવગાહ હોય છે. તેને આકાર સં. ટીકામાં આ. નં. ૧૩ માં બતાવેલ છે આ ચાર પ્રદેશવાળા પ્રતરની ઉપર બીજા ચાર પ્રદેશાવાળું બીજુ પ્રતર સ્થાપવું જોઈએ. माप्रारथी मा४ प्रदेश युभ प्रदेशवाणु धन यतरस मनी लय छ 'उक्को. सेण अणंतपएसिए तहेव' या ते मनात प्रशोवा हाय छ भने આકાશન અસ ખ્યાત પ્રદેશમાં તેની અવગાહના હેય છે
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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