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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०१ संस्थाननिरूपणम् 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो संखेज्जा नो अस खेज्जा अणंता' नो संख्येयानि नो असंख्येयानि किन्तु अनन्तानि 'वट्टा णं भंते ! संठाणा एवं चेव' तथाहि-'वटा गं भंते ! संठाणा दबट्टयाए कि संखेज्जा असंखेज्जा अणंता' वृत्तानि खल भदन्त ! संस्थानानि द्रव्यार्थतया किं संख्येयानि असंख्येयानि अनन्तानि वेति-प्रश्नः। उत्तरमाह-एवमेव-परिमण्डलसंस्थानवदेव वृत्तानि संस्थानानि नो संख्येयानि नो असंख्येयानि किन्तु अनन्तानीत्यर्थः एवं जाव अणित्थंथा' एवं यावद् अनित्थंस्थानि संस्थानानि नो संख्येयानि न वा असंख्येयानि किन्तु अनन्तानि द्रव्यार्थतयेत्य भिप्रायः । अत्र यावत्पदेन व्यत्रचतुरस्रायतसंस्थानानां ग्रहणं भवति । एतेष्वपि परिमण्डलसंस्थानवदेव व्यवस्था ज्ञेयेति । 'एवं पएसट्टयाए वि' एवं प्रदेशार्थतयाऽपि अर्थ को आश्रित करके क्या संख्यात हैं अथवा असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा अणंता' हे गौतम ! वे न संख्यात हैं न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त हैं। 'वट्टा णं भंते ! संठाणा०' हे अदन्त । वृत्त संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं ? अथवा असंख्यात हैं ? अथवा अनन्त हैं ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं चेष' हे गौतम ! वृत्त संस्थान वाले द्रव्य-न संख्यात हैं, न असंख्यात हैं किन्तु अनन्त हैं। 'एवं जाव अणित्थंथे' इसी प्रकार से यावत् अनित्थंस्थ संस्थान भी संख्यात नहीं हैं असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त हैं। यहां यावत्पद से ज्यस्र, चतुरस्र और आयत्त इन संस्थानों का ग्रहण हुआ है। इन संस्थानों में भी परिमंडल संस्थान के जैसी ही व्यवस्था जाननी चाहिये। રૂપ અર્થને આશ્રય કરીને શું સંખ્યાત છે ? અસંખ્યાત છે? કે અનંત છે ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ ,-'गोयमा ! नो स खेज्जा, नो असखेज्जा, अणता,' गौतम! ती सभ्यात नथी. म यस च्यात ५ नथी परत तसा मन त छ 'वढा णं भंते ! सठाणा०' मापन वृत्त संस्थान, द्रव्या રૂપથી શું સંખ્યાત છે? અથવા અસંખ્યાત છે ? અથવા અનંત છે? ગીતभस्वाभाना या प्रश्न उत्तरभां प्रभु ४३ थे -'एवं चेव' हे गौतम ! वृत्त સંસ્થાન–વૃત્ત સંસ્થાનવાળું દ્રવ્ય, સંખ્યાત નથી તેમ અસંખ્યાત પણ નથી ५२ सनत छ 'एव जाव अणित्थथे' मेन रीत यावत् अनित्य २५ सयान પણ સંખ્યાત નથી તેમ અસ ખ્યાત પણ નથી પરંતુ અનંત છે અહિયાં ચાવત્ પદથી વ્યસ્ત્ર, ચતુરસ્ત્ર અને આયત આ સ સ્થાને ગ્રહણ કરાયા છે. सत्यानामा ५३ परिभ3 सस्थाननी म व्यवस्था समापी. 'एव'
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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