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________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२५ उ.१ सू०३ जीवानां योगाल्पवहुत्वम् धिको भवतीति५ । 'असन्निस्स पंचिंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जा गुणे६' असज्ञिनः पञ्चेन्द्रियस्यापर्याप्तकस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको. भवतीति६ । 'सन्निस्स पंचिदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे संझिनः पञ्चन्द्रियस्यापर्याप्तकस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवतीति७). 'सुहुमस्स पज्जत्तगस्स जह-नए जोए असंखेनगुणे८' सुक्ष्मस्य जीवस्य पर्याप्तकस्य जघन्यो योगोऽसंख्येयगुणोऽधिको भवति सूक्ष्मापर्याप्तकनीवस्य जघन्ययोगा पेक्षया सूक्ष्मपर्याप्तकजीवस्य जघन्यो योगोऽसंख्यातगुणोऽधिको भवतीत्यर्थः । बादरापर्याप्तकापेक्षया बादरपर्याप्तकजीवस्य योगोऽधिको भवतीति तदर्शयति -वायरस्य पज्जत्तगस्य जहन्नए जोए असंखेनगुणे९' चादरस्यं पर्याप्तकस्य पर्याः सगुणविशिष्टस्य जीवस्य जघन्यो योगोऽसंख्यातगुणोऽधिको भवतीति ९ । सूक्ष्माः अपर्याप्तक के जघन्य योग से तेइन्द्रिय अपर्याप्तक का जो जघन्य योग है वह असंख्यातगुणा अधिक होता है ४ 'एवं चरिदियस्स' इसी प्रकार से तेइन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग से जो चौइन्द्रिय अपप्तिक का 'जघन्य योग है वह असंख्यात गुणा अधिक होता है । 'असन्निस्स पंचिंदियस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' इसी प्रकार से जो असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक हैं उनका जघन्य योग चौइन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्ध योग से असंख्यातगुणा अधिक होता है ६। 'मनिपचिंदियस्स अपज्जत्तगत जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे' ७। इसी प्रकार से संज्ञि पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक का जो जघन्य योग है वह असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग से असंख्यातगुणा अधिक होता है ७ संज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक के जघन्य योग से असंख्यातगुणा अधिक सूक्ष्म पर्याप्तक एकेन्द्रिय का जघन्य योग होता है ८ सक्षम पर्याप्तक के जघन्य योग से असंख्यात गुणा अधिक बादर पर्याप्त का ચોગથી ચાર ઇંદ્રિયવાળાઓને જે જઘન્ય ગ છે, તે અસંખ્યાત ગણે पधारे छे. ५ असन्निस्स पचिंदियस्म अप्पज्जत्त गस्स जहन्नए जोए असंखेज्ज ” એજ રીતે જે અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય અપર્યાપ્તક છે, તેને જઘન્ય રોગ ચાર ઇંદ્રિયવાળા અપર્યાપ્તકના જઘન્ય રોગથી અસંખ્યાતગણે અધિક હોય छे. ६, 'सन्निपचिंदियस्स अपज्जत्तगस्त जहन्नए जोए असखेज्जगुणे' मेरी રીતે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય અપર્યાપ્તકને જે જઘન્યાગ છે, તે અસ શી પ ચેન્દ્રિય અપર્યાપ્તકના જઘન્યાગથી અસ ખ્યાતગણે અધિક હોય છે. ૭, સન્ની પચેન્દ્રિય અપર્યાપ્તકના જઘન્ય રોગ કરતાં અસ ખ્યાતગણું વધારે સૂમપર્યાપ્તકનો જઘન્ય યોગ હોય છે, ૮, સૂક્ષમ પર્યાપ્તકના જઘન્ય યોગથી અસંખ્યાતગણે વધારે બાઇર પર્યાપ્તક એકેન્દ્રિયને જઘન્ય વેગ હોય છે. તેના ગ કરતાં અસંખ્યાત ગણું વધારે સૂક્ષ્મ અપર્યાપ્તક એક ઈદ્રિયને ઉત્કૃષ્ટ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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