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________________ .४५३ भगवतीने 'तथैव-संक्षिपञ्चेन्द्रिपतिर्यग्योनिकपकरणवदेव ज्ञातव्यं तत्राह-'जाव'. इति, यावत 'असंखेज्जवासाउयसनिमणु से णं भंते' असंख्येपवायुष्कसंझिमनुष्या खलु भदन्त ! 'जे भविए जोइसिएसु उपयज्जितए से ण भंते केवइयकालटिइएस उववज्जेज्जा' यो भव्यो ज्योतिष्कदेवेपूत्पत्तुम्, स खलु भदन्त ! कियत्कालस्थितिकज्योतिष्कदेवे पूत्पद्यते इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'एवं जहा' इत्यादि । एवं जहा असंखेज्जवासाउयसनिपचिंदियस्स' एवं यथा अंतंख्येयवर्पायुष्कसंक्षिपो. न्द्रियस्य 'जोइसिएसु चेव उववजमाणस्स सत्त गमगा तहेव मणुस्साण वि'ज्यो. तिष्कदेवेष्वेव उत्पघमानस्य सप्त गमका अधुनैव प्रदर्शिताः, तथैव मनुष्याणामपि सप्त गमकी निरूपणीयाः प्रथमास्त्रयो गमकाः मध्यमत्रयाणामेको गमः, तथा चरमास्त्रयः, इत्थं सप्तगमका इहापि निरूपगीया इति 'नवरं ओगाहणा विसेसो' में प्रश्नोत्तरादि का कथन संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रकरण में कहे गये अनुसार जानना चानिये । यही वात-'भेदो तहेव जोव' इस सूत्रपाठ द्वारा कही गई है। यावत् 'असंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! हे भदन्त ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य 'जे भधिए जोइसिएलु उववज्जित्तए' सेणं भंते । केवइयकालहिइएप्सु उवव. ज्जेज्जा' जो ज्योतिषिक देवों में उत्पन्न होने के योग्य है वह कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिषिकों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'एवं जहा असंखेज्जवासाउयसभिः पंचिंदियरस जोइसिएस्तु चेव उववज्जमाणस्त सत्त गमगा तहेव मणु. स्साण वि' हे गौतम जिस प्रकार ज्योतिषिकों में उत्पन्न होने वाले असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च के सात गमक કથન સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ યુનિક પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવું न . ४ वात 'भेदो तहेव जाव' । सूत्रमा बारा ४९ छे यावत् 'असखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते !' भगवन् मन्यात वर्षनी आयुष्य पाणी सभी मनुष्य 'जे भविए जाईसिएसु उववजित्तए से णं भंते'! केवड्यकाल. ढिइएसु उबवज्जेन्जा' २ ज्योति० हवामा उत्पन्न योग्य छ, ते । કાળની સ્થિતિવાળા જીવ તિક દેવમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तर अभु गौतम स्वामी ४ छ है-'एव जहा असंखेज्जवासाउथमन्ति पचिंदिवस जाइसिएसु चेव उववज्जमाणस्स (सत्त गमगा तहेव, मणुस्याण वि' . હે ગૌતમ ! જે પ્રમાણે જતિષ્ક દેવમાં ઉત્પન્ન થનારા અસંખ્યાત વર્ષની - આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યના સાત ગમ ઉપર હમણા જ કહે
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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