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________________ प्रमेयन्द्रका टोकाश०२४ उ.२३ ०१ ज्योतिष्केषु जीवानामुत्पत्तिः વર ज्योतिष्कदेवस्थिति संवेधं न भिन्नरूपेग जानीयादिति । 'सेमं तत्र निश्व से सं 'भाणियन्त्र' शेषं स्थिति संवेधातिरिक्तं सर्वमुत्पादपरिमाणादिद्वारजातं तथैव- असुकुमारमकरण देव निरवशेषं सर्व भणितव्यम् इति ९ । - अथ मनुष्यान ज्योतिष्के प्रत्पादयति- 'जइ मणुस्सेर्हितो' इत्यादि । 'जइ मणु 'स्सेहिंतो उववज्जेनि' यदि मनुष्येभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते तदा किं सझिमनुष्येवो मिनुष्येभ्यो वा आगत्योत्पद्यन्ते इत्यादिकं सर्व प्रश्नोत्तरादिकं संज्ञिपञ्चे न्त्रिपरिशेनिकम करावदेव ज्ञाव्यं तदेवाह 'भेदो वढेच जाव' भेदो विशेषः है यही बात 'नवरं जो हसियहिं संवेद्दं च जाणेज्जा' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। ज्योतिक देवों की स्थिति और संवेध असुर कुमारों की स्थिति और संवेध से भिन्न है । यही अन्तर असुरकुमार के प्रकरण से इस प्रकरण में है । 'सेसं तहेब निरवसेसं भाणियन्त्रं ' बाकी का स्थिति एवं संवेध से अतिरिक्त उत्पाद परिमाण आदि की कथन - जैसा असुरकुमार के प्रकरण में किया गया है वैसा ही है । उसमें कोई अन्तर नहीं है । f अब सूत्रकार मनुष्यों से आकरके ज्योतिष्क देवों में उत्पन होते हैं इस का कथन करते हैं - इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है'जइ मनुस्सेहितो सववज्जंति' हे भदन्त । यदि ज्योतिष्क देव मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकरके व उत्पन होते हैं ? अथवा असंज्ञी मनुष्यों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - हे गौतम! इस सम्बन्ध ओसिठि सवेह च जाणेज्जा' मा सूत्रपाठ द्वरा प्रगट हरेस छे. ज्योतिष्ठ દેવાની સ્થિતિ અને સવેધ અસુરકુમા૨ાની સ્થિતિ અને સવેષથી જુદા છે, को गुहापाशु असुरकुमारोना प्रहरतां आ अशुभ छे. 'सेस व सेस भाणियन्वं' या शिवाय माडीनु मेटो में स्थिति भने सवेध शिवायनु બીજું તમામ ઉત્પાદ પરિમાણુ વિગેરેનું કથન અસુરકુમારીના પ્રકરણમાં જે રીતે કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણેનુ છે. તેમા કઈજ અંતર નથી. હવે સૂત્રકાર મનુષ્યેામાંથી આવીને જાતિક દેવામાં ઉત્પન્ન થાય છે એ બતાવે છે. આ સબધમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે કે-નદ मणुस्खे हिंता ! उवज्जति' ले ज्योतिष्ठ हेव मनुष्यभांथी भावाने उत्पन्न થાય છે, તે શુ તેમે સ'ની મનુષ્યમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, કે અસ’ની મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ આ સંબંધમાં પ્રશ્નોત્તર વિગેર
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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