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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०२ आनतादिदेवेभ्यः मनुष्यपुत्पत्तिः ४०६ सागरोपमाणि द्वाभ्यां पूर्वकोटिभ्यामभ्यधिकानि द्विपूर्वकोटयाधिकपदपष्टिसागरोपमममाणका, उत्कर्पतः काळमाश्रित्य कायसंवेध इति । 'एवयं जावंकरेज्जा' एतावन्तं यावत्कुर्यात् एतावत्कालपर्यनामेव विजयादिदेवगति मनुष्यगति च सेवेत तथा-एतावत्कालपर्यन्तं विजयादिदेवगतौ मनुष्यगतौ च गमनागमने कुर्यादिति ।१। 'एवं सेसावि अढगमगा भाणियया' एवं शेषा अपि अष्टगमका भणितव्याः एवं प्रथमगमवदेव शेषा द्वितीयगमादारभ्य नवान्ता नवगमा अपि निरूपणीयाँ इति । 'नवरं ठिई संवेहं अणुबंधं च जाणेज्जा' नवरम्-केवलं स्थिति मनुवन्धं कायसंवेयं च भिन्न भिन्नरूपेग स्वस्वस्थित्यानुसारेण जानीयात् 'सेसं एवं चेव' शेपम्-स्थित्यनुवन्ध कायसंवेधातिरिक्तं सर्वमपि एवमेव-पूर्वकथितमेवा वगन्तव्यम् । 'सबट्टसिद्धदेवे णं भंते सर्वार्थसिद्धदेवा खजु भवन्त ! 'जे भविए अभहियाई उत्कृष्ट से वह कायसंवेध दो पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम का है । 'एवइयं जाव करेज्जा' इस प्रकार वह जीव इतने कालसक विजयादि देवगति का और मनुष्यगति का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह उसमें गमनागमन करता है, 'एवं सेसावि अगमगा भाणियव्वा' इसी प्रकार से अवशिष्ट आठ गम भी यहां समझ लेना चाहिये। परन्तु 'नवरं ठिई संवेह अणुबंधं च जाणेज्जा' स्थिति संवेध और अनुबन्ध अग्नी २ स्थिति के अनुसार भिन्न-२ जानना चाहिये । 'सेसं एवं चेव' स्थिति अनुबंध और कायसंवेध से अंतिरिक्त और सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही है ऐमा जानना चाहिये। ___अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-सव्वसिद्धदेवेणं भंते !' हे भदन्त ! सर्वार्थ सिद्ध देव 'जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए' जो अमहियाइ' थी यसवेध में पूटि , मधि-६६. छ।स४ सागरोपभनी छे. 'एवइये जाव करेज्जा' मा रीते . त७१ , Allen सुधा વિજય વિગેરે દેવગતિનું અને મનુષ્ય ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા Mण सुधी त तमा मनागमन ४रे छे. 'एवं सेसा वि अ8 गमगा भाणियव्वा' मा शत माहीन भा8 मे ५ महिना समन . परतु नव ठिसवेअणुबंधच जाणेज्जा' स्थिति, सवेध, भने भनुम पात'पातानी स्थिति प्रमाणे हा गुहा सभाप सेसं एवं चेव' स्थिति, અનુબંધ અને કાયસંવેધ શિવાય બાકીનું સઘળું કથન પહેલા કહ્યા પ્રમાણે ' छे. 'तम समापु. " , ' वे गीतभस्वामी प्रभुने मेछ'--'सव्वदसिद्धदेवे भतेर बन साथ सिद्ध है 'जे भविए ''मणुस्सेसु उववज्जिचए"रे मनुष्योभा +
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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