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________________ भगवती ४०० संवेहं च जाणेज्जा' नवर केवलं पूर्वप्रकरणापेक्षया स्थितिसंवेधी विभिन्नौ जानीयादिति ९ । 'जह अणुत्तरोववाइयकप्पाईपवेमाणियदेवेहिंतो उबवति' भदन्त ! यदि अनुत्तरोपपातिककल्पातीतवैमानिकदेवेभ्य आगत्य मनुष्यगती समुत्पद्यन्ते तदा - ' किं विजयअणुत्तरोववाइयकप्पाईयवेमाणिय देवेहिंतो उवव'ज्जेति विजयानुत्तरोपपातिककल्पातीत वैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते अथवा 'वेजयंतअणुत्तरोववाइय कप्पाईय वेमाणियदेवेर्हितो उत्रवज्र्ज्जति' वैजयन्तानुत्तरोपपातिककल्पातीत वैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते 'जाव' यावत्, अत्र यावत्पदेन जयन्ता पराजित देवानां ग्रहणं भवति, तथाहि - 'कि जयंतअणुत्तरोववाइयकप्पाईय द्वितीय गम से लेकर नौवें गम तक के आठ गर्मी में उत्पाद द्वार से. लगाकर का संवेध द्वार तक के सब द्वारों का निरूपण करना चाहिये । पर 'नवरं ठिहं संदेहं च जाणेज्जा' परन्तु स्थिति में और संवेध में पूर्व प्रकरण की अपेक्षा भिन्नता जानना चाहिये ९ | अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जइ अणुत्तरोववाहय कप्पाईदेवेर्हितो उचचज्जति' हे भदन्त ! यदि अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों से आकरके जीव मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं तो 'कि विजयअणुसरोववाहयकप्पाईयवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति' क्या वे विजय अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर के वह मनुष्यगति में उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'वैजयंतअणुत्तरोवयाइकाईमाणि देवे हितो उवबज्जंति' वैजयन्तअनुत्तरोपपातिक करवातीस बैमानिक देवों से आकरके वहां मनुष्यगति में उत्पन्न ભીને નવમા ગમ સુધીના આઠ ગામાં ઉત્પાત દ્વારથી લઈને કાયસ વેધ द्वार सुधीना सधणा द्वारानुं निइया ४२ हाये. पर ंतु 'ठिङ्' संवेहं च जाणेज्जा' परंतु स्थितिना संभंधभां तथा अयस'वेधना सभधभां पर કહેલ પ્રકરજી કરતાં જુદા પણુ' આવે છે. તેમ સમજવુ, હું हवे गौतभस्वाभी प्रभुने गोवु छे छे है- 'जइ अणुत्तरोववाइयकप्पावेमाणियदेवेदितो नववज्जंति' डे भगवन् ले अनुत्तरोपयाति हयातीत વૈમાનિક વેામાંથી આવીને જીવ મનુષ્ય ગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે, तो 'किं विजयअणुत्तरोववाइयकप्पाई यवेमाणियदेवेहिंतो । ववज्जंति' शु तेथे વિજય અનુત્તરે પપાતિક કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવામાંથી આવીને ત્યાં મનુષ્ય गतिमां उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'वेजयत अणुत्तरोववाइयकप्पाई यवेमाणिय 'देवैहिंतो !' श्ववज्जति' 'वैन्यन्त अनुत्तरोपयाति उयातीत वैमानि देवा
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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