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________________ ३७८ - भगवतोसो सन्धातव्यमिति भावः । 'संवेह बामपुहत्तं पुन्चकोडीपाउपमु फरेना' संवेध वर्ष. पृथक्त्वं पूर्वकोटिपु कुर्यात सनत्कुमारादीनां कायसंवेधो जघन्येन वर्षपृथक्त्वात्मका, उत्कर्षतस्तु पूर्वकोटयायुष्करूपमिति एवम्वगन्तव्यमित्यर्थः । 'सणंकुमारे विईपउगुणिया महावीसं सागरोठमा भवई' सनत्कुमारे स्थितिश्चनुगुणिता-अष्टावि शतिसागरोपमा भवति सनत्कुमारदेवानां स्वकीया आयुगः स्थितिश्चतुर्गुणिता सती वष्टाविंशतिसागरोपमा गति, तम स्थितेः सप्तादिसागरोपमप्रमाणत्वादतः अष्ट विंशतिसागरोपमा स्थितिः सनत्कुमारदेवानामित्यर्थः । 'माहिदे ताणि चेव साति. देकाणि' माहेन्द्रे तान्येव सातिरेकाणि माहेन्द्रदेवानां स्थितिः सातिरेकाष्टाविंशति. परिमाण और उत्पाद से अतिरिक्त और समस्त महनन आदि चारों लम्बन्धी कथन पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक के प्रकरण जैसा ही है। 'संवे नासपुहुत्तं पुव्दकोडीभाउ एस्तु करेज्जा' यहां कायसंवेध जघन्य से वर्ष पृथक्त्त रूप है और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटिका है । तात्पर्य यही है कि सनत्कुमार आदि देवों का काय संवेध जघन्य से वर्ष पृथक्त्वात्मक है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि आयुष्क रूप है। 'लणंकुमारे ठिई चउगुणिया अट्ठावीस लागरोधमा भव' सनत्कुमार में अपनी स्थिति के चौगुनी फरने से अट्ठाईल २८ लागरोपम की हो जाती है। सिद्धान्त में सन. स्कुमार देवलोक में सात सागरोपम की स्थिति कही गई है। पर यहां वह इस स्थिति से चौगुनी प्रकट की गई है। अतः सनत्कुमार देवों की २८ सागरोपम की वह हो जाती है। 'माहिंदे ताणि चेव सातिरेकाणि' माहेन्द्र देवलोक में माहेन्द्र देवों को कुछ अधिक २८ सागरोपम की સંહનન વિગેરે સઘળા કારો સંબંધી કથન પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિકેન ४२मा ४ह्या प्रमाणे १ छे. 'सवेह वासपुहुत्तं पुत्र कोडीआउएसु करेज्जा' અહિયાં કાયસંવેધ જઘન્યથી વર્ષ પૃથક્વ રૂપ છે, અને ઉત્કૃષ્ટધી એક પૂર્વ કેટિને છે, કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-સનકુમાર વિગેરે દેવને કાયસંવેધ જઘન્યથી વર્ષ પૃથત રૂપ છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકેટ આયુષ્ય રૂપ છે. 'सणंकृमारे ठिई चउगुणिया अट्ठावीसं सागरोवमा भवइ' सनमारमा तमना આયુષ્યની સ્થિતિ ચાર ગણી અર્થાત્ ૨૮ અઠયાવીસ સાગરોપમની છે, સિદ્ધાંતમાં સનત્યુમર દેવ લેકમાં સાત સાગરોપમની સ્થિતિ કહી છે. પરંતુ અહિયાં તે સ્થિતિ કરતાં ચાર ગણિ બતાવેલ છે. જેથી સનકુમાર हेवानी स्थिति २८ ५४यावीस सागरोपमनी थ य छे. 'माहिदे ताणि चेव सातिरेकाणि' भन्द्र पक्षामा भान्द्र वानी ५४ वधारे २८ मइयापी
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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