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________________ भगवती सूत्रे ३६२ र्न वक्तव्या सूत्रवाक्यस्य तथारूपत्वादिति भावः । ' सेसं तं चेत्र' शेषं तदेव कथितातिरिक्तं सर्वमपि वदेव पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमकरण कथितमेव ज्ञातव्य'मिति कियत्पर्यन्तमित्याह - 'जाव' इत्यादि, 'जाव' यानद पुढवीकाइए णं भंते' पृथिवीकायिकः खलु भवन्त ! 'जे भविए मणुस्सेट उज्जित से णं भंते ! - केवइयकाल डिइएस उववज्जेज्जा' यो भव्यो मनुष्ये पृत्पत्तुं स खलु भदन्त ! 'कियत्कालस्थितिकेषु मनुष्येवृत्ययेनेति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयवा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जद्दन्नेनं अंतोमुहतहिए' जघन्ये नान्तर्मुह स्थिति केषु - मनुष्ये प्रपद्येन तथा - ' उक्कोले पुन्त्रकोडी आउएस अज्जेज्जा' उत्कर्षेण नहीं होते हैं। क्योंकि इन तेज और वायुकाय एकेन्द्रियों से ओवे की मनुष्यों में उत्पत्ति नहीं होती है ऐसा सूत्रका कथन है । 'सेसं तं 'वेद' बाकी का और सब कथन पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रकरण में - जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर भी जानना चाहिये । यावत् 'पुढबीकाइए णं भंते! जे भविए मणुस्सेषु उववज्जित्तर से णं भंते ! केवइयकालडिहएस जववज्जेज्जा' हे दन्त । जो पृथिवीकाविक मनुष्यों _ में उत्पन्न होने के योग्य है वह कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे ! वह 'अंतोहिए' जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होना है और 'उकोसेणं' उत्कृष्ट से 'पुव्यकोडी आरएस उबदज्जेज्जा' एक पूर्वकोटि की आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है । = કાયિક એકેન્દ્રિયામાંથી આવીને જીવ મનુષ્ય પણાથી ઉત્પન્ન થતા નથી. “કેમકે આ એકેન્દ્રિયવાળા એમાંથી મનુષ્યની ઉત્પત્તિ થતી નથી. આ પ્રમાણે સૂત્રકારની આજ્ઞા છે. 'सेसं तं 'देव' माडीनुं जी मधु उथन यथेन्द्रियतियथ योनिम्ना પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે એજ પ્રમાણે અહિયાં પણ સમજવું. यावत् ' पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए मणुस्से पु उववज्जित्तर से णं भवे ! ム केवइयका लट्ठिएस उववज्जेज्जा' हे भगवन् ? पृथ्वी अयि छव मनुष्याभां ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય છે, તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યેામાં ઉત્પન્ન થવાને ચેાગ્ય છે, અર્થાત્ તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યોમાં ઉત્પન્ન થાય છે? 7 प्रश्न उत्तरमा प्रभु आहे - 'गोयमा ! हे गौतम! ते 'जहन्नेणं तोमुत्तट्ठिइएस' धन्यथी मेड अंतर्मुहूर्त'नी स्थितिवाला मनुष्याभां उत्थन्न थाय छे, भने ‘उक्कोसेणं' दृष्टथी 'पु०त्रको डीआरएस उववज्जेज्जा' એક પૂર્વકાટિની આયુષ્યવાળા મનુષ્યામા ઉત્પન્ન થાય છે,
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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