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________________ चन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०१ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम् ૧૭ भंते! जे भरिए मणुस्से उववज्जिर से हिए उज्जेना' 'शर्करापमापृथिवीनायिकः खलु मनुध्येम खडकास्थिति मीनाकापेक्षा भंते । के कालभदन्त ! यो भव्यो इत्यादि एतोतरे रत्न दर्शन - नवरं जहन्ने बाहुन ए' नरें जघन्येन वपृथक्त्वस्थितिवेपु मनुष्येषु 'उक्कोसेणं पुन्नकोडी आउस उवव ज्जेज्जा' उत्कर्षेण पूर्व कोट घायु के प्रपद्यते । रत्नम मानारकपकरणे जघन्यतो मास पृथक्त्वस्थितिकेषु उत्पद्यन्ते इत्युक्त शर्कराममापकरणे तु जघन्येन वर्षपृथक्त्व -- ' 21 उसी प्रकार से शर्कराम ना नारक की भी वही वक्तताः कह लेती चाहिये। जैसे- ' सकरप्प नापुढवीनेरइए णं भंते । जे भविए मणुहसेसु जित्त से णं भंते! कालएि उबवजेता' अर्थात्गौतमने इस आलापक के द्वारा प्रभु से ऐसा पूंछा है है भदन्त जी शर्कराप्रमा पृथिवी का नै पिक मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य है वह कितने कालकी स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि इस प्रेईन के उत्तर में रत्नप्रभा के नारक की अपेक्षा से विलक्षणता प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं - हे गौतम! वह 'नवरं जहन्नेणं वासपुहुतfree उक्कोण पुत्रक्कोडी आउएस उववज्जेज्जा' जघन्य से वर्ष पृथक्व की स्थिति वाले मनुष्यों में और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है । रत्नप्रभा नारक के प्रकरण में जसे की स्थितिवाले मनुष्यों में उसका उत्पाद कहा गया है । और यहां शर्कराममा के प्रकरण में जघन्य से वर्षपृथक्त्व - 1 1 धर्मा न लेई यो भो - 'सकरप्पभा पुढवी नेरइएण भते । * मा J અર્થાત્ I1 " जे भवि मस्से उववज्जितए से णं भवे ! केवइया लट्ठिएस उज्जेज्ज ' ગૌતમ સ્વામીએ આ સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રભુને એવું પૂછ્યુ છે કે હે ભગવન્ શર્કરાપ્રભા' પૃથ્વીના જે નૈરિયેક મનુષ્યામાં ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય છે. તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન. થાય છે ? વિગેરે પ્રશ્નના ઉત્તરમાં રત્નપ્રભ પૃથ્વિના નારકાથી જુદાપણું બતાવવા માટે સૂત્રકાર કહે छे' ?- गौतंभ ! ते 'नवरं जहन्ने वासहुत सु उक्कोसेणं पुत्र कोही'आउपषु उववज्जे'ना' ४धन्यथी वर्ष पृथइत्यनी स्थितित्राणां मनुष्ये भी अने ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વ કટિની આયુષ્યવાળા મનુષ્ય માં ઉત્પન્ન થાય છે રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારદેતા પ્રકરણમાં જંઘન્યથી માસપૃથવની સ્થિતિવાળા મનુષ્ચામાં તેના ઉત્પાત કહેલ છે. અને અહિયાં શર્કરા પણા પૃથ્વિના પ્રકરણુમાં જેધ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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