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________________ 'भगवतीसों उत्पद्यमानानां पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तस्थितिक वेनान्तर्मुहत्तैः कायसंवेध कृतः तथैवेह मनुष्योदेश के मनुष्याणां जघन्य स्थितिमाश्रित्य मामः पृथक् वैरेव कायसवेधः करणीय इति तथा हि-'कालादे सेणं जहन्नेणं दसंबाससंह स्साई मासपहुत्तमभहिंगाई' कालादेशेन जघन्येन दशवर्षसहस्राणि मांसपृथक्त्वा " भधि कानि इत्यादि । सेसं तं चेत्र' शेगम्-परिमागका पसंयानिरिक्तं सर्वमपि संहनना गाहनासंस्थानलेश्यादृष्टज्ञानाज्ञानादिद्वारजात तदेव' पञ्चन्द्रिपतिर्यकमाहरणोदीरितमेवेति भावः ।९। 'जहा रयणप्पभाए वत्तव्यया तहा सक करप्पभाएं वि' यथा-येन प्रकारेण रत्नममाया वक्तव्यता कथिता नथा-तेनैव प्रकारेण शर्करामभानारकेऽपि वक्तव्यता भणितमा, तथाहि आलापपकारः 'सकारप्पमा उद्देशक में रत्नप्रभा के नारकों से उत्पद्यमान पञ्चेन्द्रिगतिर्यग्योनिकों का. जघन्य से अन्तर्मुहर्त की स्थिति वाले होने के कारण अन्तर्मुहत्तों का कायसंवेध किया गया है, उसी प्रकार से यहां मनुष्य उद्देशक में मनुष्यों की जघन्य स्थिति को लेकर मासपृथक्त्व से कायसंवेध इस प्रकार से कर लेना चाहिये। जैसे-'कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससंहस्साई मासपुहुत्तमन्भहियाई" काल की अपेक्षा कायसवेध यहां जघन्य से मास पृथक्त्व अधिक १० हजार वर्ष का है इत्यादि । 'सेसं तं चेव' इस प्रकार परिमाण और कायसंवेध से अतिरिक्त और सघ संहनने, अवगाहना, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान आदि द्वार पश्चेन्द्रिय तिर्यक प्रकरण में कहे अनुमार ही है ९। 'जहा रय गप्पभाए वत्तव्ययाँ तहा सक्करप्पभाए वि' जिस प्रकार से रत्नप्रभा की वक्तव्यता कही है। ઉઘામાં રત્નાભના નારકમાથી ઉત્પન્ન થનારા પંચેન્દ્રિયતિ ચ નિવાર ળા જઘન્યથી. અંતમુહૂર્તની સ્થિતિવાળા હોવાને કારણે અંતર્મુહૂર્તથી કોયસ કહે છે એ જ પ્રમાણે અહિયાં મનુષ્યના ઉદ્દેશામાં મનુષ્યની જઘન્ય સ્થિતિને લઈને માસપૃથકૃત્વથી કાયસધ આ પ્રકારે કહેવો જોઈએ, भ-कालादेसेणं जहन्नेण दसवाससहस्साई मासपुहृत्तमभहियाइ!.nl અપેક્ષાથી કાયસંવેધ અહિં જઘન્યથી માસપૃથક્વ વધારે ૧૦ દસ હજાર पना छ, सेस तं चेत्र' मा शत परिभाष्य भने यसवेध शिवाय मीन तमाम, सडनन, सशासना, संस्थान, वेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, विरे દ્વારા સંબંધી કથન પંચેન્દ્રિય તિયના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. લી . हा रयणप्पभाए वत्तवया तहा सक्करप्पभाए वि' २ प्रमाणे २ नक्षी પૃથ્વી સબ વી કથન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું શર્કરાપેલે પૃથ્વીના નારકેના
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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