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________________ Ega રૂઢ 7 भगवतीसूत्रे 1 उत्पत्तुम् से णं भंते । केवइया ट्टिइएस उबवज्जेज्जा' स खलु मदन्त ! किय'स्काल स्थितिकेषु मनुष्येपृत्पद्येत इति मनः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'जहन्नेणं मासपुचट्टिइएस' जघन्यतो मासपृथक्त्वस्थितिकेषु द्विमामादारभ्य न मामपर्यन्तेषु इत्यर्थः 'उकोसेणं पुनकोडी माउस उववज्ज' • उत्कर्षेण पूर्व कोट्यायुष्केषु मनुष्येषु उत्पद्यते इवि जयन्यतो मामला दीन'तरमायुष्यं न कथमपि वष्नाति मास पृथक्त्वात् हीनतरपरिमाणाभावादिति, 'असे मा तवया जहा पंचिदियतिरिक्खजोणिएस उववज्र्ज्जतस्स तदेव' अवशेषा-उत्पादाद भदन्त ! रत्नप्रभा पृथिवी का नैरयिक जो मनुष्यों में उत्पन्न होने के योग्य है । 'से णं भंते ? केवइय कालट्ठिएस उववज्जेज्जा' वह कितने काल की स्थितिवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोपमा' हे गौतम! वह 'जहन्नेणं मापपुहुत्त :एस उक्कोसेणं पुन्त्रकोडी आउएस उववज्ज' जघन्य से मासपृथक्त्व की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है । उनके मापृथक्त्व से हीनतर आयु का नहीं होता है। क्योंकि मासपृथक्त्व से हीनतर परिमाण का अभाव रहता है। 'अवसेसा वक्तत्रया जहा पचिदियतिरिक्खजोणिएस उववज्ज तस्स तहेव' उत्पाद से अतिरिक्त संहनन आदि द्वार जैसे पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पद्यमान मनुष्य के कहे गये है, उमी प्रकार से वे निरय से उत्पद्यमान मनुष्य के भी कह लेना 1 भनुष्पामा उत्पन्न थव ने योग्य छे, 'से णं भंते ! केवइर्यकाळ ट्टिङ्ग'सु' 'उबवज्जेज्जा' तेथे डेटा अजंनी स्थितिवाजा मनुष्ये भां उत्पन्न थाय छे ? प्रभा प्रश्नना उत्तरमां प्रभु ४ छे ! - 'गोयमा ! हे गौतम! ते 'जहन्नेणं मासहुंत्तट्टिइसुंउको सेणं' पुत्रकोड़ी आउएसु उववज्ज३'' धन्यथी भासपृथત્વની સ્થિતિવાળા મનુષ્યમાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂક્રેડિટની • આયુષ્યવાળા મનુષ્યેામાં ઉત્પન્ન થાય છે. માસપૃથક્ક્તથી' હીનતર પિરમાણુના 'अभाव रहे छे 'अवसेसा वचन्त्रया जहा पंचि दियतिरिक्त जोगिएसु उववज्जं तस्ब तद्देव' उत्पत शिवाय सहन्न विगेरे द्वारा संबंधी स्थन के प्रभाचे यथैન્દ્રિયતિય ઇંચ 'ચેાનિવાળ આમાં ઉત્પન્ન થનારા મનુષ્યને કહ્યા છે. એજ પ્રમાણે નૈયિકાથી ઉત્પન્ન થનારા મનુષ્યના સબંધમાં જોઈએ, પરંતુ કહેવું
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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