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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २० सू०६ देवेभ्य. पं० तिर्यग्योनिकेषूत्पातः ३२७ ज्जति' हे भदन्त । यदि भवनवासि देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते तदा - 'किं असुरकुमारभवनवासिदेवेर्हितो उपज्जेति किमसूरकुमार भवनवासिदेवेभ्य आगत्योत्पचन्ते अथवा 'जात्र थणियकुमार भणासिदेवेर्हितो उववज्जति' यावत् स्तनितकुमारः भवनवासिदेवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते ? अत्र यवत्वदेन नाग- सुपर्ण-विद्यु-दसद्वीपो - दधि - दिग्र वायुकुमाराणां सर्वेषां ग्रहणं भवतीति । भगवानाह - 'गोयना ' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! असुरकुमारभत्रणवासिदेवेहितो उववज्जंति' असुरकुमार भवनवासि देवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते 'जाव धणियकुमारभवगवासिदेवे हिंतो उववज्जति यावत् स्वनितकुमार भवनवासिदेवेभ्योऽपि आगस्योत्पद्यन्ते अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'जा भवणवासिदेवेहितो उज्जत' हे भदन्त । यदि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में भवनवासी देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं तो 'किं असुरकुमार भवनवासिदेवेहितो उववज्जति, जाय धणियकुमार भवनवासिदेदेहिंतो यज्जलि' क्या वे असुरकुमार भवनवासी देवों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? यहां यावत्पद से 'नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार अग्निकुमार द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिगकुमार, वायुकुमार' हन भवनपतियों के भेदों का ग्रहण हुआ है। इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम! 'असुरकुमारभवनवासिदेवेहिंतो उववज्जति' वे असुरकुमार भवनवासि देवों से आकार के भी उत्पन्न होते हैं । 'जात्र थणियकुमार भवनवासि देवेदितो वि उववज्जति' यावत् स्तनितकु हवे गौतमस्वाभी असुने गेवु पूछे छे है - ' जइ भवणवासिदेवेहिं तो उववज्जति' हे भगवन् ले संज्ञी यथेन्द्रिय तिर्य शोभां लवनवासी देवीभांथी आावीने उत्यन्न थाय छे, तो 'कि' असुरकुमारभवनवासि देवेदितो उवब"उजति जान थणियकुमारभवणवासिदेवे हि तो उववज्जंति' शुं तेथे असुरसुમાર ભવનવાસી દેવેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે યાવત્ સ્તનિતકુમાર ભવનવાસી દેવેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અહિયાં યાવત્પદથી નાગकुमार सुवर्णु कुमार, विद्युत्भार, अभिभार, द्वीपकुमार, उदधिभार, हिकुमार, વાસુકુમાર, આ બધા ભવનવાસી દેવા ગ્રહણ કરાયા છે, આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अभु आहे छे !-'गोयमा ।' हे गौतम! 'असुरकुमारभवणवासिदेवेद्दि तो नववज्ज'ति' तेथे। असुरकुमार भवनवासी देवोभांथी भावीने या उत्पन्न थाय छे यावत् 'थणियकुमार भवनवासिदेवेहि तो उववज्ज'ति' स्तनितभार
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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