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________________ ३२६ भगवतीस देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते यद्वा 'जोइसियदेवेर्हितो उववज्र्ज्जति' ज्योतिष्क देवेम्य आगस्योत्पद्यन्ते अथवा 'वैमागिपदेवेर्हितो जववज्जंति' वैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते भवनवासिदेवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते संज्ञि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका जीवा इति देवावधि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिके पूत्पत्ति विषयकः प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'भवणवासिदेवेदितो वि उववज्र्ज्जति जाव मणिदेवेति वि उववज्जंति' भवनवासिदेवेभ्योऽपि आगत्योत्पद्यन्ते पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु तथा यावत् वैमानिकदेवेभ्योऽपि आगत्योत्पद्यन्ते ते जीवाः अत्र यावत्पदेन 'वाणमंतर देवे हिंतो वि उज्जेति जोडसिय देवेडिंतो वि उववज्जंति' इत्यनयोः संग्रदो भवतीति तथा च भवनवासिवानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकेभ्य आगत्य संज्ञिपञ्चेन्द्रियेषु उत्पद्यन्ते इति भावः । ' जड भवणवासिदेवे हितो उत्रवहोते हैं तो 'किं भवणवासि देवेहितो उववज्जंति' क्या वे भवनवासी देवों से आकरके वहां उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'वाणमंनरदेवेहिंतो नववज्जति' वानव्यन्तर देवों से आकर के वहां उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'जोइसियदेवेहिंतो उववज्जति' ज्योतिष्क देवों से आकरके वे वहां उत्पन्न होते हैं ? अथवा 'वैमाणियदेवेहिंतो उववज्र्ज्जति' वैमानिक देवों से आकरके वे वहां उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोमा' हे गौतम! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों में 'भवणवासि देवहितो वि उववज्र्ज्जति जाव वेमाणियदेवेहिंतो वि उववज्जति' भवनवासी देवों से आकर के भी उत्पन्न होते हैं, यावत् - पद से वानव्यन्तरों से आकरके भी उत्पन्न होते हैं, ज्योतिष्क देवों से आकरके भी उत्पन्न होते हैं और वैमानिक देवों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं । लवन वासी देवेामांथी भावाने त्यां उत्पन्न थाय छे ? ' वाणमंतर देवे हि तो उववज्जति' वानव्य ंतर देवेाभांथी भावीने त्यां उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'जोइ खियदेवेर्हितो श्ववज्जति' ज्योतिष्णु देवेाभांश्री भावीने तेथे त्यां उत्पन्न थाय छे ? }-‘'वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति' वैभानि देवोभांथी भावीने त्यां તેઓ ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે'गोयमा !' हे गीतभ ! संज्ञी पथेन्द्रियतिर्यय त्र 'भवणवासिदेवे हितो वि उववज्जेति जव वैमाणियदेवेहिंतो वि उववज्जति' लवनवासी हेवाभांथी આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, યાવત વાનન્યન્તર દેવેામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. જ્યાતિષ્ઠ દેવેામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે. અને વૈમાનિક દેવામાંથી પણ આવીને ઉત્પન્ન થાય છે.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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