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________________ ५६४ भगवती सूत्रे बानि शरीरावगाहना भवतीति (४) । संस्थानद्वारे - 'समचउरंस संठाणसंठिया पनता' समचतुरस्रसंस्थानसंस्थिताः प्रज्ञप्ताः ते देवजीवा इति (५) । लेश्या - हारे - 'चचारि लेस्साओ भदिल्लाओ' चतस्रो लेश्या आदिमा (६) । दृष्टिद्वारे'जो सम्मद्दिट्ठी' नो सम्यग्दृष्टयः अपितु 'मिच्छादिट्टी' मिथ्यादृष्टयः, 'जो सम्म मिच्छादिट्टी' नो सम्यग्मिथ्यादृष्टयः असुरकुमारोत्पत्तिमन्तोऽसंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्वितिर्यग्योनिकाः सम्यग्दृष्टयो न भवन्ति न वा मिश्रदृष्टयो भवन्ति अपितु मिथ्यादृष्टय एव भवन्तीति भावः (७) | ज्ञानद्वारे - ' णो णाणी' तो ज्ञानिनः अपितु 'अण्णाणी' अज्ञानिनः 'नियमं दुअन्नाणी' नियमतो द्वयज्ञानिनः, 'मइ अन्नाणी नाणी य' मत्यज्ञानिनः श्रुवाज्ञानिनश्च (८) । योगद्वारे - जोगो विविधो वि' गाहना का नाम धनुष पृथक्त्व है 'उक्कोसेणं छगाउयाई' उत्कृष्ट से छ- कोस प्रमाण होती है (8) संस्थानद्वार में इनके समचतुरस्र संस्थान होता है । (५) लेश्याद्वार में इनके आदि की चार लेश्याएं होती हैं।- (६) दृष्टिद्वार में 'णो सम्मदिट्ठी' ये सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं किन्तु - 'मिच्छादिट्ठी' मिध्यादृष्टि' होते हैं। 'णो सम्मामिच्छादिट्ठी' ये सम्पमिथ्र्यादृष्टि भी नहीं होते हैं । अर्थात् असुरकुमार में उत्पन्न होनेवाले असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव सम्धदृष्टि या मिश्र दृष्टि वाले नहीं होते हैं किन्तु वे मिथ्या दृष्टि ही होते हैं | ज्ञानद्वार में - ' णो णाणी' वे ज्ञानी नहीं होते हैं, 'अण्णाणी' अज्ञानी होते हैं 'नियमा दु अण्णाणी' ये नियम से दो अज्ञानवाले होते है जैसे- 'मइ. अन्नाणी, सुय अन्नाणी य' मत्यज्ञानवाले और श्रुताज्ञान वाले योगद्वार में जोगो तिविहो वि' ये तीनों प्रकार के योग + કૃક્ષ રૂપ અને ઉત્કૃષ્ટથી છ ૬ ગાઉ પ્રમાણુની હાય છે. એ ધનુષથી લઈ ને નવ ધનુષ સુધીની - અવગાહનનું નામ ધનુઃપૃથ છે (૪) 'સ્થાન દ્વારમાં તેઓને સમચતુસ્ર સસ્થાન હેાય છે. (૫) લેફ્સા દ્વારમાં તેને પહેલી थार बेश्या भेटले कृष्णु, नीस, अयोत, तैक्स सेश्याम होय छे. (६) दृष्टि द्वारभां 'णा सम्म हिट्टी' तेथे । सम्यग्भष्टि होता नथी परंतु 'मिच्छादिट्ठी' भिथ्या दृष्टिवाणा होय छे. 'णो सम्मामिच्छादिट्ठी' तेथे सभ्यग्मिथ्यादृष्टिवाणा પણ હાતા નથી, અર્થાત્ અસયા1 વર્ષની આયુષ્યવાળા સન્ની પ ચેન્દ્રિયતિય જ્ગ્યા નિક જીવ સમ્યક્ દૃષ્ટિ અથવા મિશ્રાન્ટિવાળા હાતા નથી. પરંતુ તે મિથ્યા ષ્ટિवाजा होय छे. ज्ञानद्वारमां - 'णो णाणी' तेथे। ज्ञानी होता नथी 'अण्णाणी' अज्ञानी होय छे. 'नियमं दु अण्णाणी' तेथे नियमथी मे अज्ञानवाणा होय छे. भडे - 'महअन्नाणी सुयअन्नाणी य' भतिमज्ञानवाणा भने श्रुत ज्ञानवाणा होय छे. योगद्वारमा- 'जोगो तिविहो वि' तेथे त्रशु प्रहारना
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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