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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०८ श० षष्ठपृथ्वीगतजीवानामुदिकम् ५४५ तथा जघन्येन एको बा, द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्याता एकसमयेन समुत्पद्यन्ते इत्यादि प्रश्नोत्तराणि सण्यिपि पूर्ववदेवोहनीयानि 'नवरं सरीरोगाहणा. जहन्नेण पवधणुसयाई' नवर शरीरावगाहना जघन्येन पञ्चधनु शतानि 'उकोसेणवि पंच धणुसयाई उत्कर्षेणाऽपि शरीरावसाहना एञ्चधनुः शतान्येब, 'ठिई जहन्नेणं पुण्यकोडी' स्थितिर्जघन्येन पूर्वकोटि: "उक्कोसेण वि पुषकोडी' उत्कर्षेणाऽपि पूर्वकोटिरेव एवं अणुबंधो वि' एवम अन्धोऽपि ज्ञातव्यः। 'णवसु वि एएसु भमएमु णेरइयढ़िई संवेहं च जाणेज्जा' नवस्वपि एतेषु. गमेषु नैरयिकस्थिति संवेधं च जानीयात् । 'समत्व भवग्गहणाइ दोन्नि' सर्वत्रोऽपि गमकेषु भवग्रहणे द्वे एव ज्ञातव्ये 'जान गवगमपए' यावनवमगम:, नवगम पर्यन्तं द्वयमेव भवग्रहणं जानीयादिति । 'कालादे सेणं जहन्नेण तेत्तीसं सारोबमाई पुचकोइसके उत्तर में जघन्य से एक अयश दो अथवा तीन और उस्कृष्ट से संख्यात नरयिक वहाँ उत्पन्न होने हैं-इत्यादि सय प्रश्न और उत्तर रूप कथन यहाँ पूर्व के कथन के अनुसार जानना चाहिये परन्तु इस कथन में और पूर्व कथन में जो अन्तर होता है वह शरीर की अवगाहना स्थिति और अनुबन्ध को लेकर के है, इस प्रकार यहां पर शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट से पांचसो धनुष की है, स्थिति भी यहां जघन्य और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि रूप है। इसी प्रकार से अनुबन्ध भी जघन्य और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिरूप ही है। 'वसु वि एएसु गमएसु गैरहादुिई संवेहं च जाणेज्जा' इन नौ गमों में नैरपिकस्थिति और संवेध को विचार कर कहना चाहिये, 'सव्वत्थ अवरगहणाइंदोन्नि' सर्वत्रगमकों में दो भवों का ग्रहण जानना चाहिये, 'फालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागोषमाई' काल की ન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટથી સખ્યાત નિરયિકે ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે.-વિગેરે તમામ પ્રશ્નોત્તર રૂપ કથન અહિયાં પહેલાના કંથનપ્રમાણે સમજવું, પરંતુ આ કથનમાં અને પહેલાના કથનમાં જે ફેરફાર હોય છે, તે શરીરની અવગાહના સ્થિતિ અને અનુબંધને લઈને છે. આ રીતે અહિયાં શરીરની અવગાહના જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી પાંચસો ધનુષની સ્થિતિ પણ અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકેટિ રૂપ છે. એજ शत अनुमध ५५] धन्य मन Bथा पूर्व मटि ३५१ छे. जवसु वि एएसु गमएसु णेरइयढिई संवेह च जाणेज्जा' मा न गमामा नायिनी स्थिति भने सधन वियार ४शन सानो 'सवत्थ भव्वगाहणाई 'दोन्नि' मा गाम में सवा सभा 'कालादेसेणं जहण्णेणं ते भ० ६९
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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