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________________ શ્રેષ્ઠ भगवती सूत्रे 'कालादेसेणं' कालादेशेन कालापेक्षया तु 'जहन्नेणं सागरोवमं पृव्यकोडीए अमहियं जघन्येन सागरोपमं पूर्वकोट्यस्पधिकम् 'उक्फोसेणं चचारि सागरो-चमाई चउर्हि पुन्त्रकोडीहिं अमहियाई' उत्कर्षेण चत्वारि सागरोपमाणि चतसृभिः पूर्वकोटिभिरभ्यधिकानि ' एवइयं जात्र करेज्जा' एतावद् यावत्कुर्यात् एतावत्काळ - पर्यन्तं तिर्यग्गतिं नरकगतिं च सेवेत एवानदेव काळपर्यन्तं गमनं चागमनं च कुर्यादिति नमो गम९ इति । 'एवमेए णत्र गमगा' एवमेते नवसंख्यकगमा, तत्र सामान्यनारकेषु उत्पादः प्रथमो गमः १, 'पज्जत' इत्यादिस्तु द्वितीयो गमः २, " सो चैत्र उक्कोसका०' इत्यादिस्तु तृतीयो गमा३ । ' जहन्नकाल द्विदय ० ' इत्यादिस्तु चतुर्थो गमः ४ । 'सो चेव जहन्नकाल' इत्यादिस्तु संज्ञिविषये पञ्चमो है उसी प्रकार का कथन भवादेश तक उसी के अनुसार यहां पर भी कहना चाहिये, काल की अपेक्षा कथन इस प्रकार से है- 'कालादेसेणं 1. जहन्नेणं सागरोपमं पुण्त्रकोडीए अमहियं' काल की अपेक्षा वह 'पूर्वोक्त विशेषणों वाला तिर्यग्योनिक जीव जघन्य से एक पूर्वकोटि 'अधिक एक सागरोपम तक और उत्कृष्ट से चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक तिर्यग्गति का और नरक गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है, इस प्रकार का यह नौचा गम है, 'एवमेए जव गमगा' इस प्रकार से ये नौ गम हैं। इनमें सामान्य नारकों में जो उत्पाद है वह प्रथम गम है ? 'पज्जत' त्यादि द्वितीय गम है ? सो चेव उक्कोलकाल०' स्यादि तृतीय गम है, 'जहन्नकाल कि०' इत्यादि चतुर्थ गम है 'सो चेत्र जहन्नकाल०' इत्यादि 9 'सेवु'. अजनी अपेक्षा समधीतु ध्यन या प्रभाये छे. - ' कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं पुचकोडीए अमहियं' अजनी अपेक्षाथी ते पूर्वेति विशेष वाणी તિયચ સૈનિક જીવ જધન્યથી એક પૂર્ણાંકૅાટિ અધિક એક સાગરોપમ સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી ચાર પૂર્વ કટિ અધિક ચાર સાગરોપમ સુધી તિય ચગતિનુ અને નારકગતિનુ સેવન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં હામનાગમન-આવજા કરતા રહે છે. આ પ્રમાણે મા નવમા ગમ છે 'एवमेए नव गमगा' मा प्रभा मा नव गम छे, सभां सामान्य नारमां ने उत्पाद छे, ते पडेलो गभ छे. १ 'पन्जत०' इत्यादि मीले गभ मे २ 'सो 'चेव उक्कोसकाळ०' इत्याह श्रीले गम छे, 'अहन्नकालट्ठिय०' इत्याहि थोथा गम छे. ४ 'सोचेव जहन्न फाल०' इत्याहि संज्ञीना विषयभा पांयभी
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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