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________________ ४३० .. . . . भगवती त्पद्यन्ते, नवमभवे तु मनुष्यः स्यादिति । 'कालादेसेणं' कालादेशेन-कालपकारेण कालापेक्षयेत्यर्थः 'जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तममहियाई” जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्ताभ्यकानि 'उक्कोसेणं चत्तारि सागरोसमाई' उत्कर्षेण चत्वारि सागरोपमाणि 'चउहि पुषकोडीहिं अन्महियाई' चतसृमिः पूर्वकोटिभिरभ्यधिकानि- 'एवइयं कालं सेवेज्जा' एतावत्काळपर्यन्त सेवेत, संज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्गति नारकगतिं च 'एवइय कालं गइरागई करेजा' एतावस्कालपर्यन्तं गत्या: गती-गमनंचागमनं च कुर्यात् संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक इति एवं प्रकारेण औषि. केषु समान्येषु नारकेषु औधिकस्य संक्षिपञ्चेन्द्रियविरच उपपातः कथितः । अयमेव इह प्रथमो गमः१।" पजत्तसंखेज्जवासाउगसनिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकाल द्विइयरयणप्पमापुढवीनेरएम उववज्जित्तए' पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कनारक होना यही अष्ट भव ग्रहण है, इसके बाद वह ९वें भव में तो मनुष्य हो ही जाता है तथा-'कालादेखेणं' काल की अपेक्षा से 'जह न्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई' जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक १० हजार वर्ष तक और 'उकोसेणं चसारि सागरोवमाइं०' चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम कालतक उस गति का उसके द्वारा सेवन होता है और इतने ही काल तक उसका गमना गमन होता है, इस प्रकार से औधिक सामान्य नारको में औधिक संज्ञिपश्चेन्द्रिय तिर्यश्च का यह उपपात कहा गया है। यहीं प्रथम गम है ॥१॥ अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पज्जत्तसंखेज्जवासाय सन्निचिदियतिरिक्खजोणिए ण भंते । जे भविए जहन्न कालहियरय. આઠ વાર તિર્યંચ અને નારક થવું એજ અષ્ટભવ ગ્રહણ છે, તે પછી તે ८ न4i समां मनुष्य थ य छे. तथा 'कालादेखणं' ४जना अपेक्षसे 'जहन्नेण दसवा सहस्साई अंतोमुहुत्तममहियाई धन्यथी ४ मतभुत' मधि: १० इस M२ वष सुधी भने 'उक्कोसेणं' Gष्टथी 'चत्तारि सागराचमाई या पूर्व अटी. मधि: यार सागरे।५म ४५ सुधी ते गतिर्नु तमा સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તેનું ગમના ગમન થાય છે. આ રીતે વિજ સામાન્ય નારકેમાં કૌષિ સંશી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચને જે આ ઉ૫પાત કહેલ છે તેજ આ પહેલે ગમ છે. ૧ व गौतमस्वामी प्रसुनमय पछे छे है-'पज्जत्तस खेज्जव सा उय •प्रन्निविदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकाल द्विइयरयणप्यभार
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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