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________________ ३०४ भगवतीस्त्र अथ पश्चमो वर्ग प्रारभ्यतेचतुर्थे वर्ग वृन्ताकी प्रभृति गुन्छजातीय वनस्पतिमूलादिजीवानामुत्पादादिकं निरूप्यं अथ गुल्मजातीय वनस्पतिविषयकः पश्चमो वर्गों निरूप्यते तस्येदमादिम सुत्रम्-'अह भंते ! सेरियए णवमालिय' इत्यादि। मूलम्-'अह अंते ! सेरियए णवमालिय कोरंटगबंधुजीवगमणोज० जहा पन्नवणाए पढमे पदे गाहाणुसारेणं जाव नवणीइया कुंद महाजईणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वकमंति० एवं एत्थ वि मुलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं' ।सू०१॥ ॥बावीसइसे सए पंचमो वग्गो समत्ती॥ छाया-अथ भदन्त ! सेरियक नवमालिका कोरण्टकबन्धुजीवक मनोज्ज० यथा प्रज्ञापनायाः प्रथमपदे गाथानुसारेण यावत् नलिनी कुन्दमहाजातीनामेतेपाये जीवा मूलनया अवक्रामन्ति० एव मत्रापि मूलादिका दशोदेशका निरवशेष यथा शालीनाम् ॥१०॥ ___टीका-अथ हे भदन्त ! 'सेरियका' सेरियक:-श्वेतपुष्पो गुल्मजातीयवनप्रतिविशेषः, 'णवमालिय' नवमालिका 'कोरंटग कोरण्टकः, 'बंधुजीवग' बन्धु- - - - - पंचम वर्ग प्रारंभ चतुर्थवर्ग में वृन्ताकी आदि गुच्छ जातीय वनस्पति के मूलादिगत जीवों का उत्पाद आदि का निरूपण करके अप स्त्रकार गुल्म जातीयवनस्पति के मूलादिगत जीवों का निरूपण करने के लिये पांचवें वर्ग का कथन करते हैं इस वर्गका प्रथम सून 'अह भंते ! सेरियए' यह है। 'अह भंते ! सेरियए णवमालियनोरंटग' इत्यादि ! પાંચમા વર્ગને પ્રારંભ– * * ચેથા વર્ગમાં વંત કી (રગણું) વિગેરે ગુચ્છાવાળી વનસ્પતિના મૂળમાં રહેલા જીના ઉત્પાત વિગેરેનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર ગુલ્મ જાતવાળા વનસ્પતિના મૂળ વિગેરેમાં રહેલા જીવોનું નિરૂપણ કરવા માટે પિાંચમા વર્ગનું કથન કરે છે-આ વર્ગનું પહેલું સૂત્ર આ પ્રમાણે છે. "ह भंते ! सेरियए' पत्याहि छ.
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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