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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२२ व.३ सू.१ बहुवीजवनस्पतिमूलादिजीवोत्प०नि० २६६. टीका--'अह भंते !' अथ महन्त । अस्थिय' अगस्तिको मुनिवृक्षः 'तिदुर तिन्दुकः 'कविठ्ठ' कपित्थः 'कोठ इति मसिद्धः 'अंबाडय' आम्रातकः 'माउलिंग मातुलिङ्गः (विजोरा) इति लोकपसिद्धः 'चिल्ल' विल्यः प्रसिद्धः श्रीवृक्षापरनामको, 'आमलय' अमलका, फणस पनामा दाडिन दाडिमा 'आसत्थ' अश्वत्था, 'उबर उदुम्बरः 'वड' वटवृक्षा, 'णम्मोह' न्यग्रोधः विपुलशाखायुक्तो षट एव, 'नंदिरुक्ख' नन्दिवृक्षः पिपलि' पिप्पली अश्वत्थजातीया एवैपा यद्वा-औषधि विशेषः । 'सतर' सतरः 'पिलक्खुरुक्ख' प्लक्षवृक्षः, 'काउंवरिय' काकोदुम्वरिका, 'कुच्छंभरिय' कौस्तुम्भरिका, 'देवशालि' देनदालि:-देवदारुशन्देन प्रसिद्ध "तिलग' तिलक: 'लउय लकुचः, 'छत्तौह' छत्रोधः 'सिरीस' शिरीषः 'सीसम' इति कहाँ से होता है इस बात का निरूपण करके अब सूत्रकार क्रमप्राप्त बहुबीजक वनस्पति सम्बन्धी अगस्तिक, तिन्दुक आदि वृक्षों के. मूल आदि रूप से उत्पन्न हुए जीवों का उत्पाद आदि का विचार करने के लिये तृतीयवर्ग प्रारंभ करते हैं-इस तृतीयवर्ग का यह 'अह भंते। अत्थियतिकविद्य' इत्यादि सूत्र प्रथम सूत्र है-- टीकार्थ--गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं-'अह भंते ! हे भदन्त ! 'अत्थिय, तिंदुय, कविठ्ठ, अंबाडग, भारलिंग, चिल्ल, आमलग, फणस, दाडिम, आमस्थ, उंबर, बड०' अगस्तिक, तिंदुक, केंथ, अंबाडग, मातुलिङ्ग, बिल्व-घेल, आमलक, पनल, अश्वत्थ, उदुम्बर, वड, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, सतर, प्लक्षवृक्ष, काकोदुंबरी, कुस्तुंभरि, देवदालि, तिलक, लकुव, छत्रौघ, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्रक, धष, चन्दन, ત્યાં કયાંથી થાય છે ? આ બાબતનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર કમથી, પ્રાપ્ત થયેલ બહુ બીજવાળા વનસ્પતિના સંબંધમાં અગસ્તિક, તિંદુક, વગેરે વૃક્ષના મૂળ વિગેરે રૂપથી ઉત્પન્ન થયેલા જીના ઉત્પાદ-ઉત્પત્તિ વગેરેને વિચાર કરવા માટે ત્રીજા વર્ગને આરંભ કરવામાં આવે છે, આ alon वनु पडे सूत्र या प्रमाणे छ-'अह भते । अस्थियति दुयकविट्ठ' त्या -गौतम स्प भी सुन से पूछे छे 3-'मह भंते ! उसस वान् 'अस्थिय विदुय कवि? अंबाडग; माउलि ग, बिल्ल आमलग, फणस, दाडिम, आसत्थ, उंबर, वडग थियो नि, है, अगाउन, भातुति, HिER-uीसी, म मन-मा , शुस, हाउभ, पीपणा, 6भ२31, 43, 16 वृक्ष, पी५२, सतर, Car, tigमरी, अतुमरी, पहाति, Gिad, य છત્રીઘ, કદમ્બ, આ બધા વૃક્ષના મૂળ રૂપે ઉત્પન્ન થનારા જે જે છે તે
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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