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________________ भगवतीसूत्रे मूलादिशाखान्तजीवानां कृष्णनीलकापोतिकाः ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साई' स्थितिमूलादिजीवानाम् जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् उत्कर्षण दशवर्ष सहस्राणि, शालिप्रकरणे जघन्या स्थितिरन्तर्मुहूर्तप्रमाणा उत्कृष्टा स्थितिवर्षपृथकत्वरूपा कथिता, इह तु उत्कृष्टा स्थितिर्दशवर्षसहस्रपरिमिता कथिता इति भवत्युभयोः स्थानयो वलक्षण्यम् । 'ओगाहणा मूले कंदे धणुहहुत्त' आगाहना मूले कन्दे च धनुःपृथक्त्वं, फलकन्दनीवानाम् शरीरावगाहना धनुः पृथक्त्वम्, द्विधनुरारभ्य नवधनुःपर्यन्तम् । शालिकवर्गे शरीरावगाहना जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागा उत्कृष्टतो धनुःपृथक्त्वमात्र सर्वेषां मूलादीनां वाली है इस अपेक्षा इस कथन में भिन्नता आती ही है-तथा इस प्रकार से भी यहां विलक्षणता आनी है-तिन्नि लेस्लाओ' मूल से लेकर शाखातक के जीवों के कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्याएँ कही गई हैं तथा इनमें देवों की उत्पत्ति का अभाव भी कहा गया है स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त की एवं उत्कृष्ट से दस हजार वर्ष की कही गई है एवं बाकी के प्रवाल आदि पांच उद्देशकों में देवों की उत्पत्ति और चार लेश्याओं का कथन किया गया है तप कि शालिप्रकरण में जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की और उस्कृष्ट स्थिति २ वर्ष से लेकर ९ वर्ष तक की कही गई है इस प्रकार ले इन दोनों स्थानों में भिन्नता है। 'ओगाहणा मूले कंदे धणुपुहुत्त मूल एवं फन्द गत जीवों की अव. गाहना २ धनुष से लेकर १ धनुष तक की कही गई है तब कि शालि. कवर्ग में सघ मूलादिकों की शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल के આવશે. આ અપેક્ષાએ આ કથનમાં ભિન્નપણુ આવે જ છે. તથા આ રીતે 4 मही विलक्षामा छ, 'तिन्नि लेस्साओ' भूगथी - Bने शाम સુધીના જીવનમાં કૃષ્ણ, નીલ અને કાપિત એ ત્રણ લેશ્યાઓ કહી છે, તથા તેમાં દેવની ઉત્પત્તિનો અભાવ પણ કહ્યો છે. સ્થિતિ જઘન્યથી અન્તમુહૂર્ત સુધીની અને ઉત્કૃષ્ટથી હજાર વર્ષની કહી છે. અને બાકીના પ્રવાલ વિગેરે પાંચ ઉદેશાઓમાં દેવોની ઉત્પત્તિ અને ચાર લેશ્યાઓનું કથન કરેલા છે. શાલી પ્રકરણમાં જઘન્ય સ્થિતિ અન્તર્મુહૂર્ત અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨ બે વર્ષથી લઈને ૯ નવ વર્ષ સુધીની કહી છે. એ રીતે આ બન્ને સ્થાનમાં मिनार छे..'ओगाहणा मूले कदे धणुपुत्त' भूण मन म २४सालवानी અવગાહના ૨ બે ધનુષથી ૯ નવ ધનુષ સુધીની કહી છે. અને શાલી પ્રકરણમાં – મૂળ વિગેરે બધાના શરીરની અવગાહના જઘન્યથી આગળના અસંખ્યામાં
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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