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________________ २७२ भगवतीसूत्रे ॥ अथ सप्तमो वर्गः मारभ्यते ॥ पष्ठ वर्गे सेंडियप्रभृतिक तृणवनस्पतिविशेषाणां स्वयं तज्जीवानां मूलादिषु समुत्पद्यमानानां समुत्पत्यादिकं च म हरितवनस्पतिजातीयाभ्ररुहादिवनस्पतिमूलतयोत्पद्यमान जीवाना पुस्पादादिव्यवस्थां प्रदर्शयितुं सप्तमो वर्गः शरभ्यते, तदनेन सम्बन्धेन आयातस्य सप्तमवर्गरयेदमादिमं सूत्रम् -'अइ भंते' इत्यादि । मूलम् - 'अह भंते ! अम्भरुहवायणहरितग तंदुलेज्जगतत्रत्थुल पोरगमज्जारिया विल्लीपालक्कदगपिप्पली दव्वी सोत्थियसायमंडुक्की मूलगसरिसव अंबिलसागे य जियंतगाणं एएसिं णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कसंति ते णं जीवा कओहिंतो उववज्जति किं नेरइएहिंतो तिरिएहिंतो मणुस्सेर्हितो देवहितो वा० एवं एत्थ वि दस उद्देगा जहेव सवग्गो । सू. १। ॥ एकवीसइमे लए सत्तमो वग्गो समत्तो ॥ सातवें वर्ग का प्रारंभ सप्तम वर्ग प्रारंभ -- पट्टठे वर्ग में 'सेडिम आदि रूप तृण वनस्पतियों के स्वरूप का कथन करके और इनके मूल आदि कों में समुपद्यमान जीवों की उत्पत्ति आदि प्रकट करुके अब सूत्रकार हरितवनस्पति की जाति की जो अभ्ररुहादिरूप वनस्पति है हो उस वनस्पति के मूलरूप से उत्पद्यमान जीवों की उत्पाद आदि की व्यवस्था को दिखाने के लिये सातवां वर्ग प्रारंभ करते हैं - इसी संबंध से आये हुए इस सम वर्ग का 'अहते ! अन्यरुह' इत्यादि प्रथम सूत्र है, 'अह भंते ! अमरुह' इत्यादि । -- सातभा वर्गना प्रारंभ છઠ્ઠાં વગમાં સે'હિચ' વિગેરે રૂપ તૃણુ વનસ્પતિયેાના સ્વરૂપનું કથન કરીને અને મૂળ વિગેરેમાં ઉત્પન્ન થનારા જીવેાની ઉત્પત્તિ વગેરે પ્રગટ કરીને હવે સૂત્રકાર હરિત (લીલી) વનસ્પતિની જાતની જે અભ્રરૂદ્ધ વિગેરે રૂપ વનસ્પતિ છે, તે વનસ્પતિના મૂળરૂપે ઉત્પન્ન થનારા જીવાના ઉત્પાદ વિગેરે બતાવવા માટે સાતમા વગ પ્રારંભ કરે છે—સાતમા વર્ષોંનું પહેલું સૂત્ર આ प्रभावे छे. - ' अह भंते ! अष्भरुह' इत्यादि
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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