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________________ भगवती सूत्रे ૨૦૬ द्वन्द्व:, तेषां कलायादि हरिमन्थकान्तानाम् 'एएसि णं' एतेषां कलायादारभ्य हरिमन्थकपर्यन्तानाम् खलु 'जे जीवाः 'मूलत्ताए वक्कमंति' मूळतया - सूलस्वरूपेण अवक्रामन्ति - समुत्पद्यन्ते 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जीवाः 'कहिंतो उववज्र्ज्जति' कुतः स्थानात् आगत्योत्पद्यन्ते कलायादि मूळे हे भदन्त ! कलायादि हरिमन्यकान्तानां धान्यविशेषाणां मूलतया ये जीवा उत्पद्यन्ते ते कस्मात् स्थानात् आगत्य अत्रोत्पद्यन्ते किं नैरयिकात् मनुष्यादितो वेति प्रश्नः । ' एवं मूलादिया मन्धक नाम चने का है तात्पर्य यही है कि कलायादि के मूलरूप से जो : जीव उत्पन्न होते हैं वे क्या नैरधिक से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - ' एवं मूलादिया दस उद्देगा भाणिवा' हे गौतम! पूर्व में कहे अनुसार यहां पर मूलादि दश उद्देशक कहना चाहिये और 'जहेब खालीणं निरवसेसं तहेव' जैसा शालि के संबंध में कहा गया है वैसा सब कथन यहां पर कहना चाहिये । तात्पर्य - मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज इन रूप दश उद्देशक होते हैं-सो प्रथम मूलोद्देशक को लेकर गौतम ने यहां प्रश्न किया है कि हे भदन्त । कलाय आदिकों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं वे कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरधिक से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों से अथवा तिर्यञ्चों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या देवों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! वे जीव તે શુ' નારકીયાથી ગૌતમામીને કહે કલાય વિગેરેના મૂળ રૂપથી જે જીવા ઉત્પન્ન થાય છે, આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ छे है- ' एवं मूलादिया दस उद्देखगा भाणियन्त्र' हे गौतम पडेसां ह्या प्रभा अडियां भूज विगेरे सौंधी इस १० उद्देशाओ। सभन्नवा भने 'जहेब खालीणं निरवसेस' तहेव' शालीना सभधमां ने अभाये हेवामां भाव्यु छे, ते પ્રમાણેનું સઘળુ' કથન અહિયાં પણુ સમજવુ.. કહેવાનું તાત્પય એ છે કે— भूस, उन्ह, २४६, छाल, डाज, प्रवास, यज, पान, पुण्य, जमने न આ પ્રમાણેના દસ ઉĚશાએ થાય છે, પહેલા મૂલેર્દેશક મૂળ સબધી ઉર્દૂશાને લઈને ગૌતમ સ્વામીએ અહિયાં એવા પ્રશ્ન કરેલ છે કે—હે ભગવાન કલાય, વિગેરેના મૂળ રૂપથી જે જીવા ઉત્પન્ન થાય છે, તેઓ કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? શું તે નરકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યાથી આવીને તેઓ ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દેવામાંથી આવીને તે
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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