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________________ __ भगवतीस्त्र विषये पश्चापि विकल्पाः संभवन्त्येवेति । कथं पश्चापि विकल्पाः संभवन्तीति ज्ञातुमाह-'से केणटेणं' इत्यादि, से केपट्टेण भंते ! एवं बुच्चइ तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते 'नेरइया छक्कसमज्जिया वि जाव छक्केहिय नो छक्केण य समज्जिया वि नैरयिकाः षट्केन समर्जिता अपि यावत् षट्कैश्च नो षटकेन च समर्जिता अपि, अत्र यावत्सदेन नो षटकसमर्जिताः २, षट्केन च नो षटकेन च समजिताः ३, षट्कैश्च समर्जिताः ४, एतेषां द्वितीयत्तीयचतुर्थविकल्पानां संग्रहो भवतीति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! जेणं नेरइया छक्कएणं पवेसणएणं पविसति ते ण नेरइया छक्कसमज्जिया १ ये खलु नैरइस प्रकार से इन पांच विकल्पों वाले नैरयिक होते हैं क्योंकि एक से लेकर असंख्यात तक के नारक अदिकों की एक समय में उत्पत्ति संभवित है । तथा-असंख्यात नारक आदिकों में भी ज्ञानियों ने षट्कों की ज्यवस्था की है इसी आशय से यहां पूर्वोक्त पांचों ही विकल्पों को प्रभु ने उत्तर के रूप में स्वीकार किया है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केगडेणं भंते ! एवं बुच्चइ नेरच्या छक्कसमज्जिया वि' हे भदन्त । ऐसा आप किस कारण ले कहते हैं कि नरयिक षट्कसमर्जित भी.होते हैं, यावत् अनेक षट्कों से एवं एक नो षट्क से भी समर्जित होते हैं यहां यावत्पद ले "नो षट्क समर्जिताः २, षट्केन च नो षद्केल च लमर्जिताः३, षट्कैश्च लर्जिताः४' इन द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ चिकल्पों का ग्रहण हुआ है। इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम -से कहते हैं-'गोयना ! जेणं नेरक्ष्या छक्कएणं पवेसणएणं पविसंति, આ રીતે આ પાંચ વિકલ્પવાળા નૈરયિકે હોય છે, કેમકે એકથી લઈને , અસંખ્યાત સુધીના નારક વિગેરેની એક સમયમાં ઉત્પત્તિ સંભવે છે. તથા અસંખ્યાત નારક વિગેરેમાં પણ જ્ઞાનીઓએ ષની વ્યવસ્થા કરી છે. એજ આશયથી મુક્તિ પાંચ વિકને પ્રભુએ ઉત્તરના રૂપમાં સ્વીકાર કર્યો છે x वे गीतभस्वामी प्रभुने मे पूछे छे है-'सेकेणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चई "नेरइया छक्कसमज्ज्रिया वि' भगवन् मा५ मे श आर डी छ। 3 * નારકીય ષક સમજીત છ સમુદાયરૂપે ઉત્પન્ન થનાર પણ હોય છે, યાવત્ અનેક ષટકોથી અને એક ને ષથી પણ સમજીત હોય છે, અહિયાં યાત્પદથી 'नो पटकसमर्जिताः२' षटूकेन च समर्जिता३' षट्कैश्च समर्जिताः' भीan alon અને ચોથા વિકલ્પ ગ્રહણ કરાયા છે. આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે"गोयमा! जेणं नेरइया छक्कएणं पवेसणएणं पविसंति, ते णं नेरइया छक्कसम
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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