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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०३ नैरपिंकादीनां षट्कादिसमर्जितत्वम् १४७ इदं च नारकादीनां पश्चापि विकल्पाः संभवन्ति एकादीनाम् असंख्यातान्तानां तेषां नारकादीनाम् एकसमयेन उत्पत्तिसंभवाद, असंख्यातेष्वपि चं ज्ञानिन: 'षटकानि व्यवस्थापयन्तीत्याशयेन भगवानाह-'गोयना' इत्यादि । ' 'गोयमा' 'हे गौतम ! 'नेरइया छक्कसमज्जिया वि' नैरयिकाः षट्क समर्जिता अपि १, ' 'नो छक्कसमज्जिया विर' नो षट्कसमर्जिता अपि २, 'छक्केण य नो छक्केण य 'समज्जिया वि ३, षट्केन च नो षट् केन च समर्जिता अपि ३, 'उक्केहि य सम'ज्जिया वि ४', षटकैश्व.समर्जिता अपि ४, 'उहिय नो छक्केण य समज्जिया वि ५ षट्कैश्च नो षट्केन च समर्जिता अपि, ५, हे गौतम ! तदेवं नारकादिजिंत हैं तात्पर्य इसका ऐसा है कि एक समय में जो उत्पन्न होते हैं उनकी जो राशि है वह यदि षट् प्रमाणवाली है तो वह राशि षट्क समजित कहलावेगी नो षटक-छठे का जो अभाव है वह नो षट्क है 'ऐसा वह नो षट्क एक से लेकर पांच तक होता है इसी प्रकार से अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये ऐसे इन पांच विकल्परूप प्रश्नों वाले 'नैरयिक होते हैं क्या ? तब इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया छक्कासज्जिया वि' नैरयिक षट्कसमर्जित भी होते हैं 'नो छसमज्जिया' नो षट्सजित भी होते हैं, 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया वि' एक पटक से और एक नो षट्क से भी समर्जित होते हैं 'छक्केहि य समजिया चि' अनेकषट्क की संख्या से भी समर्जित-उत्पन्न होते हैं तथा 'छक्के हि य नो छक्केण य सम. ज्जिया" अनेक षट्कों से और एक नो षट्क से भी उत्पन्न होते हैं આ ષકની જે રાશી-ઢગલે હેય છે તે ષક સમજીત કહેવાય છે, આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-એક સમયમાં જે ઉત્પન્ન થાય છે, તેને જે ઢગલે છે, તે જે છ પ્રમાણુવાળો હેય તે તે ઢગલે ષક સમજીત કહેવાય છે, ષક-છક્કાને જે અભાવ છે, તે ને ષક કહેવાય છે. એવું તે ને ષટ્રક એકથી લઈને પાંચ સુધી હોય છે એ જ રીતે બીજે પણ સમજી લેવું. એવા આ પાંચ વિકલ્પ રૂપ પ્રશ્નોવાળા નરયિકો હોય છે? આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં प्रभु छ -'गोयमा । गौतम! 'नेरइया हकसमज्जिया वि' नारीया षट् समत याय छ, 'नो छकसमज्जिया वि' न षट् समत ५ बाय छे. 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया वि' : पद थी मन मना षट्थी पY समय छे. 'छक्केहि य समज्जिया वि' मन पत्नी सभ्याथी सभ -34-1 थाय छे तथा 'छक्केहिं य नो छक्केण य समज्जिया ५' मान पटौथी मन मे ना पद्थी पर उत्पन्न थाय छ,
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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