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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०१० स० २ नैरयिकाणामुत्पादादिनिरूपणम् १२७ वि' एवम् उत्पत्तिदण्डकवदेव उद्वर्तनादण्डकोऽपि ज्ञातव्यः, नारकादि जीवानाम् उद्वर्तनाऽपि आत्मभयोगेणैव भवति न तु कथमपि परप्रयोगेण भवतीति ॥सू० १।। मूलम्-'नेग्इया णं भंते! किं कतिसंचया अकतिसंचिया अवत्तव्वगसंचिया? गोयमा! नेरइया कतिसंचिया वि अकतिसंचिया वि अवत्तव्वगसंचिया वि। से केणटेणं भंते! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि, गोयमा! जे णं नेरइया संखेज्जएणं पवेलणएणं पविलंति ते णं नेरइया कतिसंचिया, जे णं नेरड्या असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अकतिसंचिया, जे णं नरइया एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं नेरड्या अवत्तव्वगसंचिया से तेणट्रेणं गोयमा! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि एवं जाव थणियकुमारा वि। पुढवीकाइया णं पुच्छा गोयमा! पुढवीकाइया नो कइसंचिया अकई संचिया नो अवत्तव्वगसंचिया, से केणटेणं एवं उच्चइ जाव नो अवत्तव्वगसंचिया ? गोयमा! पुढवीकाइया असंखेज्जएणे पवेसणएणं पविसंति से तेणटेणं जाव नो अवत्तत्वगसंघिया, एवं जाव वणस्सइकाइया बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया। सिद्धा णं पुच्छा गोयमा! सिद्धा कतिसंचिया नो अकतिसंचिया अवत्तव्वगसंचिया वि से केणटेणं जाव अवत्तव्यगही उर्सना दण्डक भी जानना चाहिये अर्थात् नारकादि जीवों की उद्वर्तना भी आत्मप्रयोग से ही होती है परप्रयोग से वह कथमपि नहीं होती है ॥सू० १॥ ઉત્પત્તિ દંડકની જેમજ ઉદ્વર્તના દંડક પણ સમજી લે. અર્થાત્ નારક વિગેરે જેની ઉદ્વર્તન પણ આત્મપ્રાગથી જ થાય છે, પરપ્રયોગથી તે કઈ રીતે થતી નથી, છે સૂ૦૧
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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