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________________ ९१६ radha तृतीयो भङ्गः । देशः कर्कशो देशी मृदुको देशी गुरुको देशी लघुको देशाः शीताः देशा उष्णा देशाः स्निग्धाः देशाः रूक्षाः इति चतुर्थचतुष्कस्य चतुर्थी भङ्गा ४, ४, । 'एव चचारि चउक्का सोलस भंगा' एते चत्त्रारचतुष्काः पोडशमङ्गाः | 'देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसा लहुया देते सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लक्खे' देशः कर्कशो देशी मृदुको देशी गुरुको देशा लघुकाः देशः शीतो देश एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, अनेक देशों में शीत, अनेक देशों में For' अनेक देशों में स्निग्ध, और एकदेश में रूक्ष स्पर्शावाला हो सकता है ३ इसका चतुर्थ भंग इस प्रकार से है - 'देशः कर्कशः, देश: मृदुकः, देशो गुरुरुः, देशो लघुकः, देशाः शीताः, : देशा उष्णाः, देशाः स्निग्धाः, देशाः रूक्षाः ४' इसके अनुसार वह एकदेश में कर्कश, एक देश में मृदु, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, अनेक देशों में शीन, अनेक देशों में उष्ण, अनेक देशों में स्निग्ध, और अनेक देशों में रूक्ष स्पर्शाला हो कता है ४, 'एए चत्तारि चक्का. सोलस भङ्गा' इस प्रकार से इन चारों चतुष्कों के ये सोलह भंग है । 'देते कक्खडे, देले मउए, देखे गए, देसा लहुया, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे मिद्धे, देखे लक्खे' यह भङ्ग लघुपद को बहुवचन में रखने से हुआ है, यहां पर भी चार भंग होते हैं - यह उनमें से पहिला संग है, इसके अनुसार वह एकदेश में कर्कश, एकदेश में मृदु, एक એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ અનેક દેશેામાં શીત અનેક દેશમાં ઉષ્ણુ અનેક દેશેામાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શીવાળા ડાય छे. या थोथी अतुल गीन। त्रीले लग है 3 ' देशः कर्कशः देशो मृदुकः देशी गुरुकः देशो लघुकः देशाः शीतः देशा उगाः देशाः स्निग्धाः देशाः रूक्षाः४' अथवा ते पोताना देशमांश शमां भृटु देशभां गु३ એકદેશમાં લઘુ અનેક દેશેમાં શીત અનેક દેશેામાં ઉષ્ણુ અનેક દેશેામાં નિગ્ધ અને અનેક દેશેામાં રૂક્ષ પળે હું ય છે. આ ચેાથી ચતુસ ગીના थोथे। लौंग छे. ४ ' एवं चत्तारि चउक्का खोलस भंगा' या रीते या थारे ચતુર્ભ ́ગીના કુલ સાળ ભગો થાય છે હવે લઘુ પદને મહુવચનમાં ચેાર્થીને જે લગો થાય છે. તેના પ્રકારો अताववामां आवे छे.- 'देसे कक्खडे देसे मउर देखे गए देखा लहुया देखे सीए देखे उखिणे देसे निद्धे, देसे लुक्खे' ते येताना शमां शोદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ અનેક દેશેામાં લઘુ એકદેશમાં શીત એકદેશમાં
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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