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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०५ सप्तप्रदेशिकस्कन्धस्य वर्णादिनि ४५ लोहितश्च हारिद्रश्च शुक्लाश्चेति प्रथमंचरमयोबहुवचनान्तता शेषाणामेकवचनान्ततो चाश्रित्य त्रयोदशी भङ्गः १३ । 'सिय कालगा य नीलए य लोहियए य हालि. इंगा य सुकिल्लए य १४' स्यात्कालाथ नीलश्च लोहितश्व हारिद्राश्च शुक्रश्चेति प्रथमोपान्त्ययोबहुवचनान्ततां शेषाणामेकवचनान्तता चाश्रित्य चतुर्दशो मङ्गः १४ ॥ सिय कालगा य नीलए य लोहियगा य हालिहए य सुकिल्लए य १५' स्यात् कालाश्च नीलश्च लोहिताश्च हारिद्रश्च शुक्रश्चति प्रथमतृतीययोर्वहुवचनान्तत कालगाय, नीलए छ, लोहियए थ, झालिदए य, सुल्लिगाघ १३' यह १३ वा भंग है इसके अनुसार इसके अनेक प्रदेश कृष्ण, वर्णमाले, एक प्रदेश नीले वर्णवाला, एक प्रदेश लोहितवर्ण वाला, एक प्रदेश हारिद्र वर्णवाला और अनेक प्रदेश शुक्ल पूर्ण वाले हो सकते हैं इस भंग में प्रथम और अन्तिम पद में बहुश्चनना और शेषपदो में एकपचनता हुई है । 'सिय कालगाय, नीलर थ, लोहियए य हालिदगा य, सुकिल्लए य १४' यह चौदहवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्ण वर्णवाले, एक प्रदेश नीले वर्णवाला, एक प्रदेश लोहित वर्णवाला अनेक प्रदेश पीले वर्णवाले और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इस प्रथम पद में और चतुर्थ पद में बहुवचनता की गई है और शेषपदों में एकवचनता । 'सिय कालगा य, नीलए या लोहियगा य, हालिद्दए य, सुविचल्लए य १५' यह १५ वां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्ण वर्णवाले, एक प्रदेश नीले वर्णवाला लोहियएं ये हालिए य सुकिल्लगा य१३' पोताना भने प्रदेशोभा आणा. વર્ણવાળા હોય છે. એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે. તથા બીજા કોઈ પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળો હોય છે. કેઈ પ્રદેશમાં પીળાવર્ણવાળે તથા અનેક પ્રદેશોમાં સફેદ વર્ણવાળ હોય છે આ ભંગમાં પહેલા અને છેલા પદમાં બહુવચન તથા माहीना पहीमा क्यनमा प्रयोग य छे. १३ 'सिय कालगा य नीलए य लोहियए य हालिहंगा य सुकिल्लए य १४' पाताना भने प्रदेशमा णाવર્ણવાળો કોઈ એક પ્રદેશમાં નીલ વણવાળો કેઈ એક પ્રદેશમાં લાલ વર્ણવાળે અનેક પ્રદેશોમાં પીળા વર્ણવાળો તથા એક પ્રદેશમાં સફેદવર્ણવાળો હાથ છે. આ ભંગમાં પહેલા પદમાં અને ચોથા પદમાં બહુચન તથા બાકીના પદમાં वयनका प्रयोग यथे। छ. १४ 'सिय कालगा यं नीलए य लोहियगा य हालिए य सुकिल्लए य १५पताना मने प्रशाभा ज १ वाले डाय छे. ४ પ્રદેશમાં નીલ વર્ણવાળો હોય છે. અનેક પ્રદેશોમાં લાલવર્ણવાળો હોય છે भ० ९४
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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