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________________ Ga भगवती सूत्रे : शेषेषु एकवचनान्ततां चाश्रित्य दशमो भङ्गः १० । 'सिर्य कालए य नीलगा य लोहियगा य हालिद्दर य सुचिल्लर य११' स्यात् कालश्व नीलार्थ लोहिताश्च हारि are safa द्वितीयतृतीययोर्थहुवचनान्ततां शेषाणामेकवचनान्तां चाश्रित्य एकादशो भङ्गः ११, 'यि कालगा य नीलए य लोहियए य हालिदए य सुकि ल्लए य १२' स्यात् कालाच नीलम लोहितश्व हारिद्रश्च शुक्लचेति प्रथमस्य बहुवचनान्तां शेषाणामेकचवचनान्ततां चाश्रित्य द्वादशो भङ्गः १२ । 'मिय कालगी य नीलए य लोहियए य हालिदए य सुकिल्लगा य १३' स्यात् कालाश्च नीलश्च प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इसमें द्वितीय पद में और चतुर्थ पंद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता की गई हैं 'सिय कालए य, नीलगाय, लोहिया य, हालिदएं य सुक्किल्लए य ११' यह ग्यारहवां भंग है इसके अनुसार वह अपने एक प्रदेश में कृष्णवर्ण वाला, अनेक प्रदेशों में नीले वर्णवाला, अनेक प्रदेशों में लोहित वर्णवाला, एक प्रदेश में पीछे वर्णवाला और एक प्रदेश में शुक्ल वर्णवाला हो सकता है इस भंग में द्वितीय तृतीय पद में बहुवचनता और शेषपदों में एकवचनता प्रयुक्त हुई है 'सिय कालगा य नीलए य लोहियेए य, हालिए य सुकिल्लए य' १२ यह १२वां भंग है इसके अनुसार वह अपने अनेक प्रदेशों में कृष्ण वर्णवाला, एक प्रदेश में नीले वर्णबाला, एक प्रदेश में लोहित वर्णशला, एक प्रदेश में पीले वर्णवाला और एक प्रदेश में शुक्लवर्ण वाला हो सकता है इस भंग में प्रथम पंद में बहुवचनता और शेष पदों में एकवचनता प्रयुक्त हुई है 'सिय यहां मडुवयन मनें महीना यही मेश्वथनथी उद्या १० 'सिंय कोलए ये नीलगाय, लोहियगा य, हालिदएं य, सुक्कििल्लए य११' ते चताना अध मे પ્રદેશમાં કાળા વણુ વાળા હાય છે. અનેક પ્રદેશેામાં નીલ વધુ વાળા હોય છે. અનેક પ્રદેશેામાં લાલ વણુ વાળા કાઇ એક પ્રદેશમાં પીળા વણુ વાળા અને કંઇ એક પ્રદેશમાં સફેદ વણુ વાળા હૈાય છે. આ ભાગમાં બીજા અને ત્રીજા પદ્મમાં મહુવચનં તથા બાકીના પદોમાં એકવચન કહેલ છે. ૧૧ ‘પ્રિય कॉलगाय, नीलए य, लोहियए य. हालिए य, सुक्किलए ये १२ ते पोताना અનેક પ્રદેશમાં કાળા વણુ વાળા હાય છે. એક પ્રદેશમાં નીલગુ વાળા એક પ્રદેશમાં લાલ વણુ વાળા એક પ્રદેશમાં પીળા વણુ વાળા અને એક પ્રદેશમાં સફેદ વણુ વાળા હાય છે, આ ભાગમાં પહેલા પદ્મમાં મહુવચન અને मीना यद्दोभां मेऽवयनमा प्रयोग ये छे. १२ 'सिय कालंगा य नीलपं य
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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