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________________ मेद्रिका टीका श०२० उ०५ ०३ पञ्चप्रदेशिक स्कन्धनिरूपणम् -६४७ . कालव नीलाभ शुक्ला ४, स्यात् कालाच नीलश्च शुक्लव ५, स्यात् कालाच : नीव शुक्ला ६, स्यात् कालाच, नीलाथ शुक्लश्चेति सप्तमो भङ्गः ७ । 'काल afवाला हो सकता है एकदेश उसके नीलेवर्णवाला हो सकता है और 'एकदेश उसका शुक्लवर्णधाला हो सकता है 'सिय कालए नीलए सुकिल्ला' यह द्वितीय भंग है इसके अनुसार उसका कोई एकदेश का वर्णवाला कोई एकदेश नीलेवर्णवाला तथा अनेक देश शुक्लवर्णवाले हो सकते हैं 'सिय कालए नीलगा सुक्किलए य ३' यह तृतीय भंग है इसके अनुसार कोई एक प्रदेश उसका कालेवाला हो सकती हे अनेक प्रदेश उसके नीलेवर्णवाले हो सकते हैं और कोई एकप्रदेश उसका शुक्लवर्णवाला हो सकता है 'सिय कालए नीलगा सुकिल्लगा '' यह चतुर्थ भंग है इसके अनुसार उसका कोई एकप्रदेश कृष्णवर्ण tor हो सकता है अनेक प्रदेश उसके नीलवर्णवाले हो सकते हैं और अनेक प्रदेश उसके शुक्लवर्णवाले हो सकते हैं सिय कालगा य, नीलप 'य सुकिल्लए य' यह पांवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश 'कृष्णवर्ण के हो सकते हैं कोई एक प्रदेश उसका नीलेवर्ण का हो सकता है और कोई एक प्रदेश उसका शुक्लवर्ण का हो सकता है 'सिय कालमा य नीलए सुकिल्लगा य' यह छठा भंग है इसके अनु सार उसके अनेकप्रदेश कृष्णवर्णवाले कोई एक प्रदेश नीलवर्णवाला पशु वाणी होय छे. आ पडेलो लौंग १. 'सिय कालए नीलए सुकिल्ला. य' કદાચ તેના કોઇ એક દેશ કાળા વણુ વાળો હાય છે. કાંઇ એક દેશ નીલ વ વાળો હાય છે. અનેક દેશમાં ધેાળા વણુ વાળો હોય છે. આ રીતે આ ખીન્ત + 123 भौंग थाय छे. २ 'सिय काल नीलगा सुक्किल्लए य३' ४हाथ तेनेो मे अहेश કાળા વણુ વાળો હાય છે. તેના અનેક પ્રદેશેા નીલવણુ વાળા હાય છે. તથા એક દેશમાં ધાળાવણુ વાળા ડાય છે. એ રીતે આ ત્રીજો ભ'ગ થાય છે. ૩' .. खिय कालए नीलगा सुकिल्लगा य ४', उहाथ ते चाताना अर्ध मे अहेशभां કાળાવણુ વાળો હાય છે. અનેક પ્રદેશેમાં નીલવણુ વાળો હાય છે. તથા અનેક प्रदेशाभां घाणावर्षावाणी होय छे. या रीने थोथे। लौंग थाय छे. ४' 'सिय कालाय नीलए क्लिप य ५' अाथित् ते चाताना अनेक अहेशाभां अजान વણુ વાળા હાય છે. તેના કેઇ એક પ્રદેશ નીલવળુ વાળો હાય છે. તથા તેના એક પ્રદેશ ધેાળાવણુ વાળો હાય છે. એ પ્રમાણે પાંચમા ભંગ થાય છે. પ "सिय कालगा य नीलए सुक्किल्लगा य ६' ते उान्थित् भने प्रदेशाभां अजा
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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