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________________ ६४६ भगवतीसत्रे दारिद्रश्चेति सप्तमः । ' एवं कालगनीलगसु किल्लएस सत्त भंगा' एवं कालनील शुक्लेषु सप्तभङ्गाः, तथाहि - 'सिय कालए नीलए सुकिल्लए१, सिय कालए नीलएं सुकिलगाय२, सिय कालए नीलगा सुकिल्लए य३, सिय कालए नीलगा सुकिल्ल गाय ४, सिय कालगा य नीलक्ष् य सुकिल्लए ५, सिय कालगा य नीलए सुकिल्ल६, सिगालगा नीलगाय सुकिल्लए य७' स्यात् कालश्च नीलश्च शुक्लथ १, स्यात् कालच नीलश्च शुक्लाच २, स्यात् कालच नीलाथ शुक्लश्च ३, स्वात् हो सकता है 'स्पात् कालाच नीलश्च हारिद्रश्च' यह पांचवां भंग हैं इसके अनुसार वह अपने अनेक देशों में काले वर्णवाला हो सकता है किसी एकप्रदेश में नीलेवर्णवाला हो सकता है और किसी एक प्रदेश में पीले वर्णवाला हो सकता है 'स्वात् कालाच नीलश्च हारिद्राच' यह छठा भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कोलेवर्णवाले हो सकते हैं कोई एक प्रदेश नीलेवर्णवाला हो सकता है और अनेक प्रदेश उसके पीछेवर्णवाले हो सकते हैं 'स्वात् कालश्च नीलाश्व हारिद्र्श्व' यह सातवां भंग है इसके अनुसार वह अपने अनेक प्रदेशों में कालेवर्णवाला हो सकता है अनेक प्रदेशों में नीले वर्णचाला हो सकता है और एकप्रदेश में पीलेवर्णवाला हो सकता है 'एवं कालग नीलग सुविकल्लएसु लत्त भंगा' इस कथन के अनुसार काल नील और शुक्ल इनके संयोग में भी लात भंग होते हैं जो इस प्रकार से है - 'सिय कालए नीलए सुकिल्लए य' यह प्रथम संग है इसके अनुसार उसका एकदेश कृष्ण " स्यात् कालाश्च नीलश्च हारिद्रश्च ५' हाय ते पोताना अने देशमां जा વણ વાળા હાય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં નીલવણુ વાળા હાય છે. કોઈ એક प्रदेशसां चीजा वायु वाणी होय छे, मा रीते या पांयभो लौंग छे. 'स्यात् फाटकाच नीलश्च हारिद्राश्च ६' महायंते ने प्रदेश अणाव पाणी हाय છે. કેઈ એક પ્રદેશમાં નીલવણુ વાળા હેાય છે. અને અનેક પ્રદેશેામાં પીળાवालुवाणी होय छे. मे रीते छट्टो लौंग छे. ६' 'स्यात् कालकांश्च नीचाइष हारिद्रश्च ७' है। वार ते पोताना भने अहेशोभां अणाववाणी हायं छे. अने પ્રદેશેામાં નીલવવાળા હોય છે. તથા એક પ્રદેશમાં પીળા વણુ વાળા હોય છે. એ રીતે આ સાતમા ભંગ થાય છે. ૭ હવે કાળા વણુની સાથે નીલ मेने घोणा वशुना योगथी थता सात अगो बतावे छे - 'सिय कालए नीलप सुकिलए य १' तेर्धवार पोताना शेउदेशमां अजाववाणी हाय छे. એક દેશમાં નીલવર્ણવાળા હૈાય છે. તથા એક દેશમાં પાળા
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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